राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जलनात्मक वृत्ति का नाम क्रोध है। दूसरों का अनिष्ट करने के लिये अंतःकरण में जो जलनात्मक वृत्ति पैदा होती है, उसका नाम क्रोध है। मनुष्य के स्वभाव के विपरीत कोई काम करता है या फिर जब मनुष्य के स्वार्थ और अभिमान में बाधा पड़ती है, तब क्रोध होता है। क्रोध के वशीभूत होकर मनुष्य न करने योग्य काम भी कर बैठता है, जिसके फलस्वरूप स्वयं उसको पश्चाताप करना पड़ता है। क्रोधी व्यक्ति उत्तेजना में आकर दूसरों का अपकार तो करता है, पर क्रोध से स्वयं अपना अपकार कम नहीं होता। अर्थात् उसका कोई नया अनिष्ट नहीं हो सकता। परंतु क्रोधी व्यक्ति दूसरे का अनिष्ट करने की भावना से और अनिष्ट करने से पाप संग्रह हो जायेगा तथा उसका स्वभाव भी बिगड़ जायेगा। वह स्वभाव उसे नरक में ले जाने का हेतु बन जायेगा, वही उसे दुःख देगा, जिस योनि में जायेगा क्रोधी व्यक्ति की संसार में अच्छी ख्याति नहीं होती, प्रत्युत निंदा ही होती है, क्रोध से सम्मोह, सम्मोह से स्मृति विभ्रम, स्मृति विभ्रम से बुद्धिनाश और बुद्धिनाश से मनुष्य का पतन होता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।