राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि महिषासुर के प्रसंग में श्री मार्कंडेय महापुराण में कथा आती है कि एक-एक करके सभी देवताओं ने महिषासुर से युद्ध किया, लेकिन सब हार गए। जब कोई भार एक व्यक्ति से न उठे तो दो लगते हैं, इसके इसके बाद भी न उठे तो तीन, चार, पाँच और आखरी में अनेकों लोग लग जाते हैं। तो कार्य की सिद्धि अवश्य होती है। भगवती तेज पुंज रूपा है, सब ने अपनी-अपनी शक्ति अलग की और वहां सभी देवताओं की शक्ति का विशाल तेजपुंज उपस्थित हुआ। उसी विशाल तेज पुंज से भगवती प्रगट हुई। माँ भगवती की आराधना से समस्त देवताओं की आराधना हो जाती है। संपूर्ण दैवीशक्ति का अगर एक स्थान पर दर्शन करना हो, तो वो मां दुर्गा के रूप में दर्शन होता है। मां भगवती का दर्शन करने हम-आप जाते हैं, तो कई जगह चारभुजा, तो कई जगह आठ भुजा में, कई जगह दस भुजा में और अठ्ठारह भुजा में दर्शन होता है और शास्त्र तो अनंत भुजा में भी मां का दर्शन कराते हैं। जब मां अठ्ठारह भुजा में दर्शन दे रही हो तो समझ लेना चाहिए वहां नवदुर्गा एकत्रित हो गई है। जहां दस भुजा मां भगवती के हैं, वहां चार ब्रह्मा, चार भगवान विष्णु, दो भगवान शंकर के ये दस भुजा वाली माँ का दर्शन हो गया।इस तरह सम्पूर्ण दैवीशक्ति का समूह मां भगवती के रूप में हम-आप को दर्शन दे रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी देवताओं से माने शक्ति उधार लिया है। ऐसा अर्थ बिल्कुल नहीं है सभी देवताओं को शक्ति देने वाली माँ ही हैं। लेकिन देवता जब दानवों से हार गये, तो मां ने कहा कि हमारी दी हुई शक्ति वापस दो। अब इन दोनों का संहार हम स्वयं ही करेंगे और फिर माँ ने अपनी शक्ति वापस ले करके, महिषासुर आदि दानवों का संहार किया। मां भगवती की आराधना से समस्त देवता प्रसन्न हो जाते हैं। मां की आराधना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा स्थान संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास -जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री मार्कंडेय महापुराण के षष्टम दिवस की कथा में वर्णाश्रम आदि धर्मों का निरूपण किया गया। कल की कथा में नवदुर्गा के प्राकट्य की कथा होगी।