नई दिल्ली। भारी घाटे और कर्ज में डूबी देश की एकमात्र सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को लंबी जद्दोजहद के बाद खरीदार तो मिल गया, लेकिन पिछले 10 साल में इस विमानन कंपनी ने करदाताओं के 1,57,339 करोड़ रुपये हवा में उड़ा दिए। दिसंबर में कंपनी की कमान टाटा समूह को सौंपे जाने तक सरकार को इसके पीछे भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ेगी। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि एयरलाइंस को चलाने के लिए सरकार को अभी तक मोटी रकम खर्च करनी पड़ी है। टाटा समूह को इसकी कमान सौंपे जाने के बाद भी सरकार के हिस्से बड़ी बकाएदारी रहेगी। इसका भुगतान भी करदाताओं के पैसों से ही किया जाना है। 2009-10 से अभी तक एयर इंडिया के पीछे खर्च हुई रकम में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कर्ज और बकाया भुगतान की रही। 2019 में सरकार ने स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी) के तहत नई कंपनी एयर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड (एआईएएचएल) बनाकर उसमें 29,464 करोड़ रुपये डाल दिए थे। यानी कंपनी के खरीदार को इस कर्ज का भुगतान नहीं करना होगा, बल्कि सरकार चुकाएगी। विनिवेश प्रक्रिया पूरी होने के बाद सरकार के पास एयर इंडिया की नॉन कोर संपत्ति बचेगी। इसमें भूमि, भवन, पेंटिंग, होटल आदि शामिल होंगे। विश्लेषकों का अनुमान है कि इस संपत्ति की कुल कीमत 14,718 करोड़ रुपये होगी। इसमें 7-8 हजार करोड़ की भूमि, 3-4 हजार करोड़ के भवन, पेंटिंग व अन्य सामानों की अनुमानित कीमत 2,000 करोड़ रुपये होगी। हालांकि, इस कीमत पर खरीदार मिलना मुश्किल होगा। इसके अलावा सरकार के पास एयर इंडिया की चार अनुषंगी कंपनियों की भी जिम्मेदारी रहेगी, जिनका मूल्यांकन करीब 1,000 करोड़ रुपये होगा। लिहाजा इन संपत्तियों के भी खरीदार मिलना मुश्किल होगा।