सकाम कर्म के त्याग को कहते हैं सन्यास: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीताज्ञानयज्ञ मोक्षसन्न्यास योग भगवान श्री कृष्ण ने श्रद्धात्रय का वर्णन किया। तब अर्जुन ने प्रश्न किया- प्रभु सन्यास किसे कहते हैं? सन्यास का लक्षण क्या है? ऐसा लगता है- अर्जुन का संन्यास के प्रति आकर्षण अधिक है। प्रारम्भ में भी अर्जुन ने यही कहा था। भैक्ष्यमपीह लोके मैं भिक्षा मांगकर गुजारा कर लूंगा, लेकिन युद्ध नहीं करूंगा। प्रश्न- सन्यास किसे कहते हैं? उत्तर-भगवान श्रीकृष्ण ने कहा पार्थ- काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदुः। कुछ विद्वान सकाम कर्म के त्याग को सन्यास कहते हैं। स्त्री, पुत्र, धन, मान, प्रतिष्ठा पाने के लिए यज्ञ, दान, पूजा-पाठ करना ये काम्य कर्म कहलाता है। सकाम कर्म का त्याग करना ही सन्यास है। त्याज्यं दोषवदित्येके। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि कर्ममात्र में दोष है। व्यक्ति कर्म करेगा तो कुछ न कुछ दोष आयेगा ही आयेगा। फल की इच्छा भी जागृत हो ही जाती है। इसलिए काम्यकर्मों का त्याग करना कर देना ही सन्यास है। यज्ञदानतपः कर्म न त्याज्यमिति चापरे। कुछ लोग कहते हैं सकाम कर्मों का त्याग ठीक है, लेकिन यज्ञ, दान, तप, जप का त्याग नहीं करना चाहिए। इस तरह अनेक मत हैं। लेकिन सबका निचोड़ जो सार है, वह हम तुम्हें बता देते हैं। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- यज्ञ दान तपः कर्म न त्याज्यं। यज्ञ, दान, तप इनका त्याग नहीं करना चाहिये। कार्यमेव तत्। यह तो कर्तव्य ही है। अगर त्यागना ही है तो- फल की कामना का त्याग करो। क्योंकि यज्ञ, दान, तप, मनुष्य के हृदय को पावन कर देने वाला है। इसलिए यज्ञ, दान, तप किसी परिस्थिति में त्याज्य नहीं है।अर्थात संन्यास लेने के बाद भी यज्ञ, दान, तप करते रहना चाहिए।
कर्तव्य बुद्धि से जो कर्म किया जाता है, वो बंधन का हेतु नहीं होता। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान एवं वृद्धाश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ में मोक्ष सन्यासयोग की कथा का गान किया गया।