उत्तम गति है दान: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी ने कहा कि दान का महत्व विश्वबन्द्य पूज्य श्री गोस्वामी तुलसी दास जी महाराज कहते हैं धर्म के चार पद होते हैं- प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान। येन केन विधि दीन्हे दान करै कल्यान। उनमें एक प्रधान है- येन केन विधि दीन्हे दान करै कल्यान। मनुस्मृति भी यही कहती है- दानमेकं कलौ युगे। श्रीकृष्णद्वैपायन भगवान् वेदव्यास जी महाराज कहते हैं- धन की तीन गति होती है- धन की पहली गति दान है। अर्थात प्राप्त धन, पद, विद्या का परोपकार और परमार्थ के कार्यों में लगाना। दूसरी गति- अपने या अपनों के लिए उसका सद्उपयोग कर लेना। अगर हम यह नहीं करते तो थन की तीसरी गति नाश है। जैसे- पानी कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेता है और वह चला जाता है। वैसे ही धन भी चला जाता है। तो उत्तम गति है दान और दान चार प्रकार का होता है। एक तामस व्यक्ति को दान करना, एक राजस व्यक्ति को दान करना, एक सात्विक व्यक्ति को दान करना और गुणातीत को दान करना। तो जिस पात्र को हम दान करेंगे उसी का फल मिलेगा। जितने में हमारा-आपका पेट भर जाय। खाना, कपड़ा मिल जाय बस इतने के ही हम-आप हकदार हैं। भगवान् व्यास भागवत में कह रहे हैं इसके अलावा अगर तुम्हारे पास आ जाय, पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार तो उसे ईश्वर के कार्य में परोपकार और परमार्थ में लगाना चाहिए तन, मन, धन ये तीन वस्तु है। अगर धन है तो परमार्थ में लगाओ, नहीं है तो तन और मन दो को परमार्थ में लगाओ। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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