पुष्कर/राजस्थान। पुष्कर/राजस् थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि प्रार्थना की महिमा- भगवान् की आराधना और प्रार्थना ऐसी वस्तु है कि वह यदि शुद्ध श्रद्धा भक्ति से की जाये तो ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसकी सिद्ध न हो सके। सावधानी- मानव शरीर का उद्देश्य एकमात्र भगवत प्राप्ति है। संसार में तरह-तरह की बातें होती हैं अतः सावधान रहें। सावधानी ही पहली साधना है। सावधानी छूटने से साधन नहीं बनता। अंधेरा और प्रकाश-अन्न-जल से भी ज्यादा उपयोगी है प्रभु का स्मरण कीर्तन। हमें तत्परता से भजन कीर्तन में लग जाना चाहिए। भगवान् से विमुख होने से ही सारे रोग आते हैं। विमुख होना अंधेरा और सन्मुख होना प्रकाश है, मनुष्य शरीर- ब्रह्मलोक और देवलोक से भी ज्यादा महिमा इस मनुष्य शरीर की है। परमात्मा की प्राप्ति सदा के लिये सत्य हो जाय, ऐसा मौका हमारे शरीर को मिला है। किसी दूसरे शरीर में यह बात नहीं है। धैर्यवान व्यक्तियों को मनुष्य शरीर का विशेष उपयोग करना चाहिए। सदैव प्रसन्न रहना एक मानसिक तपस्या है। इस तपस्या में आनंद मिलता है। भगवान से संबंध- अपना भाव यह कर लें कि मैं भगवान का हूं और भगवान मेरे हैं। संसार मेरा नहीं और मैं संसार का नहीं, क्योंकि पहले भी आप भगवान के थे और अंत में भी भगवान् के ही रहेंगे। सार बात यही है कि सभी कार्य, समय, व्यक्ति, वस्तुएं भगवान् की हैं। प्रत्येक क्रिया का सम्बन्ध भगवान् से जोड़ दें। प्रभु का संबंध ही उन्नति के द्वार खोलता है। प्रसन्नता- प्रभु को पुकारने से विपत्ति का समन होता है। भगवान् के चरणों की शरण लेना बहुत बढ़िया बात है। भगवान् के चरणों में गिर जाना बहुत बढ़िया भजन है। भगवान का काम करते हुए अनुकूलता, प्रतिकूलता आती है तो वे भी भगवान के द्वारा भेजी गई है,प्रतिकूलता में प्रसन्न होना चाहिए। भगवान् के विधान में राजी होना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी वापू धाम
सेवाट्रस्ट,गनाहेड़ा-पुष्कर जि ला-अजमेर (राजस्थान)।