पुष्कर/राजस्थान। श्रीकृष्ण के सखा सुदामा बड़े त्यागी, तपस्वी, अपने नित्य धर्म में लगे रहते थे। वेद का पढ़ना पढ़ाना, पठन-पाठन यही इनका परम धर्म था। कभी किसी से कुछ मांगते नहीं थे। गृहस्थ आश्रम में रहकर भी गृहस्थाश्रम को चलाने के लिए उन्होंने कोई आय का साधन नहीं बनाया।शुकदेव जी कहते हैं- भगवान की इच्छा से कोई बस्तु मिल जाय, कोई दे जाय तो उसी से काम चला लेते थे। किसी से कुछ मांगते नहीं थे। विद्यार्थियों को पढ़ाते थे लेकिन किसी से फीस नहीं लेते थे, कुछ नहीं लेते थे। न खेती न कोई कारोबार, किसी यजमान के यहां पूजा-पाठ अनुष्ठान कराने भी नहीं जाते थे, ऐसे विरक्त थे। सारी दुनिया भगवान को अपना देवता मानती है और भगवान ऐसे त्यागी तपस्वी ब्राह्मण को अपना देवता मानते हैं। भगवान का एक नाम ब्रह्मण्यदेव है। ब्राह्मण हैं देवता जिसके।
ग्यारहवाँ स्कन्ध- भगवान ने उद्धव जी को अनेक प्रकार का उपदेश किए। उद्धव जी के अनेक प्रश्नों का उत्तर देते हुए भक्ति, ज्ञान, वैराग्य सब सुनाया। एक सौ पचीस वर्ष तक भगवान् ने प्रकट रूप से लीला किये। महाभारत आदि के माध्यम से दुष्टों का संहार किये। बारहवाँ स्कन्ध- श्री शुकदेव जी कहते हैं राजन भगवान का सब चरित्र मैंने आपको सुना दिया।अब आप भगवान का स्मरण करो। शुकदेव जी जिस प्रकार आये थे, उसी प्रकार विदा होकर चले गये। तक्षक ने मुख लगाया, उसके पहले ही राजा की आत्मा का उत्क्रमण हो गया।शरीर भस्म बन गया। गंगा तट पर परीक्षित बैठे थे। श्री गंगा जी की एक लहर आई शरीर की भस्म को लेकर चली गई। परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हो गई। भागवत कथा सुनने के बाद भगवान से केवल एक प्रार्थना करनी चाहिए, आप इतनी कृपा करना कि आपके चरणों की भक्ति प्राप्त हो। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।