नई दिल्ली। भारत के साथ ही कई देश भुखमरी और कुपोषण का दंश झेल रहे हैं। इसके साथ ही विश्व में बढ़ता खाद्य संकट बढ़ता जा रहा है। स्थितियां निरन्तर खराब हो रही हैं। इधर रूस और यूक्रेन का युद्ध बढ़ता ही जा रहा है जिसके चलते खाद्य का संकट और भी गहराता जा रहा है। खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने से लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में भुखमरी और इससे सम्बन्धित कारणों से प्रति दिन 25 हजार से अधिक लोगों की असमय काल के गाल में जा रहे है जिसमें बच्चों की संख्या अधिक है।
हर रोज दस हजार बच्चे भूख के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। विश्व में लगभग 845 मिलियन लोग कुपोषित हैं। खाद्य पदार्थों की तेजी से बढ़ती कीमतों के चलते इनकी संख्या और भी बढ़ सकती है। शहरी गरीब, विस्थापित आबादी, ग्रामीण भूमिहीन सहित अधिकांश छोटे किसानों पर सबसे अधिक कुपोषण का शिकार होने का खतरा मंडरा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह भी दावा किया है कि पिछले दो दशकों के दौरान आबादी में वृद्धि, आय में सुधार और आहार के विविधीकरण ने भोजन की मांग में लगातार बढ़ोतरी की है।
वर्ष 2000 से पूर्व बड़े पैमाने पर रिकार्ड फसल के माध्यम से खाद्य कीमतों में गिरावट आई थी। अब स्थितियां बदल गई हैं। अधिकांश विकासशील देशों में फसल की पैदावार घटी या स्थिर है। कृषि में सार्वजनिक और निजी निवेश में भी गिरावट आयी है। खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई तेजी का एक प्रमुख कारण शहरीकरण के लिए कृषि भूमि को गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तित करने की होड़ है।
इससे कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है और आबादी बढ़ रही है जिनके लिए खाद्यान्न की जरूरतें भी बढ़ी हैं। खाद्य कीमतों ने किसानों को वैकल्पिक खाद्य और गैर-खाद्य फसलों में स्थानान्तरित करने को प्रोत्साहित किया है। मौजूदा हालात को देखते हुए अब विश्व समुदाय के समक्ष चुनौतियां बढ़ गई हैं। वैश्विक खाद्य संकट से निबटने के लिए बड़ी काररवाई आवश्यक हो गई है। इसमें विलम्ब होने से स्थितियां और खराब होगी। भुखमरी और कुपोषण को रोकने के लिए सरकारी उपाय तो किए जा रहे है लेकिन उसके लिए और गंभीरता दिखाना जरूरी है।