वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्द्र राय को मिला नीरज पुरस्कार…

नई दिल्‍ली। महाकवि गोपाल दास नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के तत्वावधान में महाकवि स्वर्गीय गोपाल दास नीरज की पुण्यतिथि पर एक कवि सम्मेलन का आयोजन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के लॉन में किया गया। प्रोग्राम का शुभारंभ सहारा इंडिया मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और एडिटर-इन-चीफ उपेंद्र राय ने किया जिसमें देश के जाने माने कवियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्द्र राय ने अपने उद्बोधन में नीरज जी के साथ बिताए पलो का संस्मरण साझा किया।

यही नहीं उन्होंने कार्यक्रम में नीरज की कविताओं का पाठ भी किया, जो उन्हें बचपन से कंठस्थ है। इस मौके पर नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष और नीरज के पुत्र अरस्तू प्रभाकर और पदमश्री सुरेन्द्र शर्मा की तरफ से वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्‍द्र राय को प्रथम नीरज पुरस्कार से 51 हज़ार की राशि देकर सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उनको साहित्य को पत्रकारिता में बढ़ावा देने और उनके लोकप्रिय कार्यक्रम हस्तक्षेप के लिए दिया गया।

आयोजकों के अनुसार हस्तक्षेप कार्यक्रम के माध्यम से वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्द्र राय ने समाज के हर वर्ग की आवाज सत्ता के गलियारों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। इस मौके पर वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्‍द्र राय ने घोषणा किया कि आगे से यह पुरस्कार वह खुद हर साल नीरज के सम्मान में चयनित रचनाकारों एवं साहित्यकर्मियों को देंगे।

वहीं महाकवि गोपाल दास नीरज की काव्य संवेदना के बारे में अपने विचार साझा करते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्द्र राय ने कहा कि हिन्दी भाषा में जब भी कवियों और उनकी काव्य रचना के बारे में बात होती है, तो सबसे पहले उन्हें दो खानों में बांटने की कोशिश होती है। पहली कैटेगरी होती है, साहित्य रचने वाले कवि और दूसरी कैटेगरी होती है। मंच पर लोकप्रियता हासिल करने वाले कवि। जाहिर है साहित्य की कैटेगरी में आने वाले कवियों को ही गंभीर रचनाकार माना जाता रहा है, जबकि मंचीय कवि मात्र मनोरंजन के उपकरण ही समझे जाते रहे हैं।

लेकिन इन दोनों खेमों के बीच कुछ कवि ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने आलोचकों की बनाई सीमाओं और दायरों का लगातार अतिक्रमण किया। वहीं हरिवंश राय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन और रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवियों ने न सिर्फ गंभीर साहित्य रचा, बल्कि कवि सम्मेलनों के मंच पर भी लोकप्रिय रहे। इन्ही में एक महत्वपूर्ण नाम और जुड़ता है और वो नाम महाकवि गोपालदास नीरज का है। नीरज को नैराश्य भाव का कवि बताने वाले आलोचकों का प्रत्युत्तर देते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार उपेन्द्र राय नीरज की इन पंक्तियों को उद्धृत किया।

छिप-छिप अश्रु बहाने वालो!  मोती व्यर्थ बहाने वालो!

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।

गोपाल दास नीरज को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कवि डॉ. प्रवीण शुक्ल अपनी इस कविता का पाठ किया।

स्वर तो मौन हुआ है,

बेशक पर धुन अब भी गूँज रही है,

गीत भवन में काव्य-कामिनी अपना प्रियतम ढूँढ़ रही है,

वो लगते थे बड़े अलग से कहते थे,

वो सारे जग से बूँद-बूँद रस के झरने से पूरा घड़ा भरा करता है,

कुछ साँसों के रूक जाने से नीरज नहीं मरा करता है,

मशहूर शायर एवं राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने नीरज की काव्य रचना के मर्म को रेखांकित करते हुए यह नज्म पढ़ी।

हम कब कहाँ किसी के असर में रहे, हम तो चुभते सभी की नज़र में रहे हम के तूफ़ाँ पे कोई क़सीदा लिखें उससे बेहतर है, कश्ती भँवर में रहे।

कार्यक्रम के समापन संबोधन में लोकप्रिय कवि पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा ने महाकवि नीरज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि हिंदी कवि सम्मेलनों के तीन आधार स्तंभ हैं, काका हाथरसी, बालकवि बैरागी और महाकवि नीरज। यह तीनों बुनियाद के पत्थर साबित हुए इस साहित्य के ताजमहल के मगर नीरज बुनियादी पत्थर के साथ साथ इसके गुबंद भी साबित हुए। नीरज से पहले कोई नीरज नहीं था, नीरज के बाद कोई नीरज नहीं हुआ।

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