पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् शिव कैलाश पर विराजते हैं। एक बार पार्वती जी ने कहा-भोलेनाथ! नारायण जी ने और ब्रह्मा जी ने कितने सुंदर महल बनवाए हैं, लेकिन हम ही ऐसे हैं कि पर्वत पर रहते हैं। दुनियां कहती है कि आप त्रिलोकीनाथ
हैं। आप सबको सब कुछ देते हैं, लेकिन पत्नी पर्वत पर रहती है, यह शोभा नहीं देता। हमारे लिए भी कुछ बनवा दें। भगवान शंकर मुस्कराए और बोले- जो आनंद यहां है, वह वहां नहीं है। पार्वती! जो आनंद वैराग्य में है, वह आनंद और कहीं नहीं है। लेकिन पार्वती जी लक्ष्मी जी का महल देखकर आई थीं, नहीं मानी। बोली- हमें बढ़िया महल चाहिए। भगवान शंकर ने पार्वती जी के लिए सोने का विशाल महल बनवा दिया। वह विशाल महल क्या, वह तो विशाल नगर जैसा था। भगवान शंकर बोले पहले हवन पूजन करवा लें, गृह प्रवेश के मुहूर्त और पूजा उपरांत ही उस घर में चलेंगे। कोई बढ़िया ब्राह्मण बुला लेते हैं।
सबसे बढ़िया ब्राह्मण रावण ही है, मेरा भक्त भी है। स्वयं ब्रह्मा जी उसे पढ़ाने जाते हैं, अतः महापंडित भी है। गृह प्रवेश का मुहूर्त निश्चित हुआ। सब प्रकार की पूजा सामग्री लाई गई। रावण पूजन कराने बैठ गया और महल देखकर बहुत खुश हुआ कि भोले बाबा ने पार्वती अम्बा के लिए बढ़िया नगर बनाया है। सब कुछ विधि-विधान से हो गया। पार्वती जी ने कहा- इसने बहुत अच्छे ढंग से पूजा करवाया है, इसे कुछ ज्यादा ही दक्षिणा देनी है। शिव जी ने पूछा क्या दे दें? पार्वती जी ने कहा- इसी से पूछ लीजिए। भगवान् शंकर ने रावण से पूछा- पंडित जी दक्षिणा क्या चाहिए? रावण बोला- भोले भंडारी! आपसे कुछ मांगने में संकोच हो रहा है। अन्यथा बहुत इच्छा थी कि आपसे कुछ मांग लूँ। भोलेनाथ बोले- नहीं! नहीं! मांग लो, जो चाहिए। रावण बोला- यह महल मुझे दे दीजिए। भगवान शंकर ने कहा तथास्तु, तुम्हें दे दिया। पार्वती अम्बा का मुंह पीला पड़ गया। गुस्से से पूँछा-यह क्या किया? भोले शंकर बोले- अपना वह कैलाश अच्छा है। हमें तो एकांत में रहकर भजन करना है। भोलेनाथ वैराग्य के मूर्तमान स्वरूप हैं। भोले बाबा अपने पास कुछ नहीं रखते, लेकिन शरण में आने वालों के लिए कुछ भी कमी नहीं रखते। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।