नई दिल्ली। आय दिन यह देखा जाता है कि जब भी कोई विमान हादसा होता है या किसी एयरलाइन के कर्मचारी द्वारा कोई गलती हो जाती है, तो भारत सरकार के नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) उसकी जाँच कर दोषियों को सज़ा देती है। परंतु ऐसे कई मामले भी सामने आते हैं, जहां बड़ी से बड़ी गलती करने वाले को डीजीसीए द्वारा केवल औपचारिकता करके कम सज़ा दी जाती है। फिर वो चाहे एक कोई नामी कमर्शियल एयरलाइन हो, किसी प्रदेश का नागरिक उड्डयन विभाग हो या कोई निजी चार्टर हवाई सेवा वाली कम्पनी। यदि डीजीसीए के भ्रष्ट अधिकारियों ने मन बना लिया है तो बड़ी से बड़ी गलती को भी नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर कभी-कभी डीजीसीए के अधिकारी अपनी गलती छिपाने के लिए किसी बेक़सूर को दोषी ठहरा कर कड़ी से कड़ी सज़ा दे देते हैं। ताज़ा उदाहरण एक ऐसे पाइलट का है जिसने डीजीसीए के कई नियम और क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ा कर अपने लिए कम से कम सज़ा तय करवाई।
इसके साथ ही यह भी निश्चित कर लिया कि उसके द्वारा बार-बार किए जाने वाली गंभीर से गम्भीर गलती को नज़रंदाज़ भी कर दिया जाए। चूँकि यह पाइलट देश की एक निजी चार्टर सेवा के मारफ़क देश के बड़े-बड़े नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों की सेवा में रहता है इसलिए आरोप है कि वो अपने ख़िलाफ़ हर तरह की कार्यवाही को अपने ढंग से तोड़ मरोड़ कर खानापूर्ति करवा लेता है। कैप्टन एच एस विर्दी नाम के इस पाइलट ने लगातार डीजीसीए के नियम और क़ानून तोड़ कर यह साबित कर दिया है कि वे चाहे कुछ भी करे उसके ख़िलाफ़ कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हो सकती। कैप्टन विर्दी के ख़िलाफ़ बी.ए. टेस्ट (पाइलट के नशे में होने का टेस्ट) के कई उल्लंघनों और तमाम संगीन लापरवाहियों की लिखित शिकायत डीजीसीए को भेजी गई। जाँच के बाद उसे व उसके लाइसेन्स को 17 फ़रवरी 2022 को केवल 3 महीने के लिए ही निलंबित किया गया। जबकि इससे कम संगीन ग़लतियों पर डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन के कर्मचारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दे देते हैं। डीजीसीए में ऐसे दोहरे मापदंड का कारण केवल भ्रष्टाचार ही है। दिल्ली के पत्रकार रजनीश कपूर द्वारा दी गई लिखित शिकायत में इस बात के प्रमाण भी दिए कि कैप्टन विर्दी ने अपने रसूख़ के चलते निलंबन अवधि के दौरान ही 3 मार्च 2022 को अपना पीपीसी चेक भी करवा डाला। निलंबन अवधि में ऐसा करना ग़ैर-क़ानूनी है। ऐसा नहीं है कि डीजीसीए के उच्च अधिकारियों को इस बात का पता नहीं। लेकिन रहस्यमयी कारणों से वे इस संगीन गलती को अनदेखा करने पर मजबूर थे।
जब डीजीसीए के भ्रष्ट अधिकारियों को इस बात का एहसास हुआ तो डीजीसीए के इतिहास में पहली बार, कैप्टन विर्दी के निलंबन लागू होने की तारीख़ को बदल दिया गया। शिकायतकर्ता का आरोप है कि डीजीसीए के अधिकारियों द्वारा कैप्टन विर्दी के निलंबन की तारीख़ को एक सोची-समझी साज़िश के तहत 17 फ़रवरी 2022 से बदल कर 4 मार्च 2022 कर दिया। ऐसा इसलिए किया गया जिससे कि विर्दी द्वारा ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से किया गया पीपीसी चेक मान्य माना जाए। इस निर्णय से साफ़ ज़ाहिर होता है कि डीजीसीए में भ्रष्टाचार ने किस कदर अपने पाँव पसार लिए हैं। शिकायतकर्ता रजनीश कपूर ने 28 मई 2022 को इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक पत्र लिख कर नागरिक उड्डयन मंत्री, नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री, नागरिक उड्डयन सचिव, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सतर्कता अधिकारी व केंद्रीय सतर्कता आयोग को डीजीसीए के अधिकारियों की इस गलती की जाँच करने की माँग की है।
हाल ही में विर्दी का एक और मामला सामने आया जिसे डीजीसीए के संज्ञान में लाया गया। यह मामला 15 अगस्त 2021 का है जहां विर्दी ने देश के नामी स्टील उद्योगपति के विमान पर भी बी.ए. टेस्ट का उल्लंघन किया। इस उड़ान के पहले Capt HS विर्दी ने बिना किसी मेडिकल स्टाफ़ की मौजूदगी के अपने बी.ए. टेस्ट की जानकारी रिकोर्ड में दर्ज करा दी। इसका खुलासा तब हुआ जब डीजीसीए के अधिकारियों ने एक ऑडिट किया। इस ऑडिट में एक और बात सामने आई। कैप्टन विर्दी ने बतौर इग्ज़ामिनर, इसी उद्योगपति के विमान पर, एक पाइलट का रूट चेक करना था। वो रूट चेक केवल काग़ज़ों में हुआ। चूँकि विर्दी ने उस विमान में यात्रा ही नहीं की थी इसलिए विमान के यात्री मैनिफ़ेस्ट में कैप्टन विर्दी नाम ही नहीं था। ग़ौरतलब है कि ऑडिट से यह पता चला है कि विर्दी ने फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों की मदद से अपने नाम वाला मैनिफ़ेस्ट जमा करवा दिया। एक के बाद एक बी॰ए॰ टेस्ट में फेल होने के बावजूद कैप्टन विर्दी के फ़र्जिवाड़े को भी नज़रंदाज़ करने के पीछे डीजीसीए के कौनसे अधिकारी हैं? इसका पता लगाना, डीजीसीए में भ्रष्टाचार की मधुमक्खियों का छत्ता को छूने के बराबर होगा। ऐसा जब भी होगा तब भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के कारनामे परत दर परत खुलते जाएँगे और सच जनता के सामने आएगा।
सोचने वाली बात है कि मौजूदा महानिदेशक और उनके कुछ चुनिंदा अधिकारी डीजीसीए में बड़ी से बड़ी लापरवाही को मामूली सी गलती बता कर दोषियों को चेतावनी देकर छोड़ देते हैं। आँकड़ों की माने तो ऐसी लापरवाही के चलते हादसों में भी बढ़ोतरी भी हुई है। हादसे चाहे निजी एयरलाइन के कर्मचारियों द्वारा हो, निजी चार्टर कंपनी द्वारा हो, किसी ट्रेनिंग सेंटर में हो या फिर किसी राज्य सरकार के नागर विमानन विभाग द्वारा हो, यदि वो मामले तूल पकड़ते हैं तो ही सख़्त सज़ा मिलती है, वरना ऐसी घटनाओं को आमतौर पर छिपा दिया जाता है। वीवीआईपी व जनता की सुरक्षा की दृष्टि से समय की माँग है कि नागर विमानन मंत्रालय के सतर्कता विभाग को कमर कस लेनी चाहिए और डीजीसीए में लंबित पड़ी पुरानी शिकायतों की जाँच कर यह देखना चाहिए कि किस अधिकारी से क्या चूक हुई। ऐसे कारणों की जाँच भी होनी चाहिए कि तय नियमों के तहत डीजीसीए के अधिकारियों ने दोषियों को सही सज़ा क्यों नहीं दी और एक ही तरह की गलती के लिए दोहरे मापदंड क्यों अपनाए?