पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री वल्लभाचार्य जी भगवान श्रीकृष्णचंद्र का सुंदर स्वरूप श्रीवल्लभाचार्यजी के हृदय में विराजमान था। उनकी मानसी सेवा करके आपका हृदय अनुराग से परिपूर्ण हो गया था। संसारी जीवों के कल्याण की और आपका झुका हुआ। तब आपने विचारा कि जीवों की सच्ची जीवनी जो भगवान की भक्ति है, उसे दूसरे जीवों को भी देना चाहिए। तभी आपने अपने हृदयस्थ प्रेम ज्ञान के प्रकाश को शरणागत जीवों के हृदय में प्रकाशित किया। जहां-तहां घर-घर में श्याम सुंदर की सेवा का आनंद फैल गया। इससे लोक में जीवों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। इनके प्रेम से प्रगट प्रभु के दर्शन करके आज भी नेत्र प्राप्त करने का फल लीजिए। श्रीवल्लभाचार्य जी श्री नाथ जी (जतीपुरा-गोवर्धन) की सेवा में बड़े ही चतुर थे। सेवा के समय आपको कभी जरा-सी भी आतुरता नहीं होती थी। अनेक प्रकार के भोग-राग अर्पण किये जाते थे। उससे सभी लोगों को चारों और से सुख प्राप्त हो रहे थे। श्री नाभा जी ने उन्हें पृथु की सुंदर पूजा पद्धति का उपासक कहा वह पूर्ण सत्य है। गोकुल में उनका धाम है, वहां की पूजा-सेवा जानकर (प्रत्यक्ष देखकर) तथा सुनकर भक्तजन मन रीझ जाता हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।