किराए के मकान में रहने से पहले जानें अपने अधिकार

काम की खबर। अगर आप भी घर से दूर किराए का मकान लेकर रहते हैं तो यह खबर आपके काम की है। किराए पर लिए गए मकान के लिए आपको रेंट एग्रीमेंट कराना बहुत आवश्‍यक है। यह लैंडलॉर्ड और किराएदार दोनों के बीच बनाया जाने वाला एक डॉक्यूमेंट होता है। इसमें दोनों पार्टियों से जुड़ी हर तरह की जानकारियां दर्ज होती है। इनमें से दोनों को ही डॉक्यूमेंट में मेंशन किए गए नियमों का पालन करना आवश्‍यक होता है।

एक किराएदार के रूप में आपके कई ऐसे अधिकार होते हैं जिनका प्रयोग आप आवश्‍यकता पड़ने पर कर सकते हैं। अगर आप इन अधिकारों से अवगत रहते हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं। हम यहां आपको रेंट अग्रीमेंट और इंडियन रेंट रेगुलेशन से जुड़ी कुछ बातों के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, आइए विस्‍तार से जानते हैं।

किराएदार के क्या है अधिकार?
यदि आप किराए पर मकान लेते हैं तो मकान मालिक को कुछ सुविधाएं अनिवार्य रूप से आपको उपलब्ध करानी चाहिए। इनमें आवश्‍यक सेवाओं के अलावा सिक्योरिटी और एकांत का अधिकार जैसी बातें शामिल हैं। साथ ही आपके लिए यह जानना भी बहुत जरूरी है कि कोई भी मकान मालिक बिना किसी ठोस कारण के किराएदार को मकान से बाहर नहीं कर सकता है। किराए पर मकान लेते समय आपको अपने मकान मालिक से एक लिखित समझौता कर लेना चाहिए ताकि किसी भी तरह का विवाद होने पर उसकी शिकायत की जा सके।

इंडियन रेंट रेगुलेशन के क्या है नियम?
भारत में बड़ी संख्या मकान किराए पर लिए और दिए जाते हैं। भारत में रेंटल हाउसिंग इतना पॉपुलर है कि कई राज्य भविष्य को ध्यान में रखते हुए रेंटल पॉलिसीज लाने की तैयारी कर रहे हैं। केंद्र सरकार के मॉडल टेनेंसी एक्ट के अनुसार किराएदार को रेंट एग्रीमेंट साइन करना बहुत जरूरी है। भारत में किराए के घरों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने मॉडल टेनेंसी एक्ट लागू किया है। इसके जरिए प्रोसेस को किराएदार और मकानमालिक दोनों के लिए फायदेमंद बनाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

रजिस्ट्रेशन भी है जरूरी :-
किराए पर मकान लेने वाले कई लोग किराएनामा बनवाने और उसके रजिस्ट्रेशन को इतना सीरियस नहीं लेते हैं। कई बार किराएदार और मकान मालिक दोनों ही कुछ पैसे बचाने के लिए एक मौखिक समझौता कर लेते हैं। वहीं कई बार ऐसा भी होता है कि किरायानामा बनवाने के बावजूद फीस से बचने के लिए उसका रजिस्ट्रेशन नहीं कराया जाता है। ऐसा करने पर रिस्क तो रहता ही है साथ ही इसे गैर-कानूनी गतिविधि के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में अगर कोई बात-विवाद होता है तो दोनों पार्टियों के लिए यह परेशानी खड़ा कर  सकता है।

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