Health: मौसम में बदलाव के साथ, हम जिस वातावरण में रहते हैं उसमें भी बदलाव बहुत स्पष्ट होता है. हम अपने आस-पास जैव-जीवन में कई तरह के बदलाव देखते हैं, जैसे वसंत में फूल खिलना और शरद ऋतु में पौधों में पत्तियों का झड़ना, सर्दियों के आगमन के साथ कई जानवरों का शीतनिद्रा में चले जाना, इत्यादि. चूँकि मनुष्य भी उसी पारिस्थितिकी का हिस्सा है, इसलिए शरीर बाहरी वातावरण से बहुत प्रभावित होता है. कई बहिर्जात और अंतर्जात लय का एक दूसरे के साथ विशिष्ट चरण संबंध होता है;
संस्कृत शब्द “ऋतुचर्या” दो शब्दों से मिलकर बना है. “ऋतु” का अर्थ है ऋतु और “चर्या” का अर्थ है दिनचर्या. प्राचीन आयुर्वेदिक पद्धति में ऋतुचर्या का अर्थ है मौसमी परिवर्तनों के दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक प्रभावों से निपटने के लिए जीवनशैली और आहार-विहार को नियमित बनाए रखना. मॉनसून आयुर्वेदिक रूटीन में क्या होना चाहिए, जिससे बीमारियां शरीर से दूर रहें.
मॉनसून आयुर्वेदिक रूटीन क्या है?
दही | कफ बढ़ाता है ,पाचन बिगाड़ता है |
उड़द-राजमा | वात बढ़ता है, गैस-अपच की परेशानी होती है |
बासी खाना | भारीपन करता है,एसिड बनाता है |
हरी पत्तेदार सब्ज़ियां | नमी की वजह से कीटाणु बढ़ते हैं |
तला-भुना | कब्ज और गैस एसिडिटी करता है |
फ्रिज का पानी और छाछ | शरीर में वात दोष, कफ, जुकाम बढ़ता है |
खट्टे फल | पित्त-कफ दोनों बढ़ाते हैं |
मांसाहारी भोजन | पाचन कमज़ोर करता है |
बरसात का मौसम, बीमारी का डर
बारिश के दिनों में खाने, पानी और हवा से होने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ता है तो वहीं मच्छर से होने वाली बीमारियों में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां होने लगती हैं टाइफाइड, डायरिया, वायरल-बैक्टीरियल, इंफेक्शन, स्किन एलर्जी डैंड्रफ, हेयरफॉल जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इस मौसम में गट हेल्थ में दिक्कतें बढ़ जाती हैं.
अपने डाइट में करें शामिल
बारिस के दिनों में हेल्दी और सुपाच्य खाना खाएं. इसके लिए डाइट में मूंग दाल, लौकी, परवल, तुलसी, अदरक काढ़ा, पुराना चावल, तुरई खाएं. इस तरह के खाने को पचने में आसानी होती है. इससे वात कंट्रोल होता है और इम्यूनिटी बूस्ट होती है. जौ-चने का सत्तू शहद घी के साथ पचने में आसान होता है इससे कफ कंट्रोल और वात शांत होता है. हल्दी त्रिकुटा, सौंठ, केला,सेब,अनार खाने से पित्त कंट्रोल होता है और पोषण भरपूर मिलता है.
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