राजस्थान/पुष्कर। परम् पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि पिता की आज्ञा को पाकर भगवान् राम चौदह वर्ष के लिये वन में गये हैं, साथ में भैया लखन और सीता जी भी हैं। सावन-भादों का महीना आया। रात्रि का समय था, बिजली चमक रही है, मेघ गरज रहे हैं, तेज हवा के साथ वर्षा हो रही है। अवध के राजमहल में कौशल्या की नींद चली गयी है। उठकर आई मां झरोखे के पास, देखा- तूफान, आंधी के साथ वर्षा हो रही है। मां के नयनों से भी वर्षा होने लगी। याद आई- कहां होंगे मेरे बच्चे इस वक्त, कहां भीगते होंगे, आई मोहे रघुवर की सुधि आई, रघुवर की सुधि आई मोरे रामा, रघुवर, आगे आगे राम चलत है, पीछे लछिमन भाई, ओहो, रामा बीच जानकी अधिक सोहे राजा- जनक की जाई, रघुवर की सुधि आई, मुझे रघुवर की, सावन गरजे, भादौ बरसे, पवन चले पुरवाई, ओहो, कौन विरछ तर भीजत होंगे, सिया लखन रघुराई, ओहो रघुवर की सुधि आई, मुझे रघुवर सीता बिना मोरी सूनी रसोई, लखन बिना ठाकुराई, ओहो भगवान श्रीराम बिना मेरी सूनी अयोध्या, महल उदासी छाई, ओहो रघुवर की सुधि आई, मुझे रघुवर, भीतर रोये मात कौशल्या, बाहर भरतजु भाई, ओहो, दशरथ जी ने प्राण तजे हैं, कैकई मन पछताई। ओहो रघुवर की सुधि आई, मुझे रघुवर। जीव मात्र के आधार एवं आराध्य, सब कुछ, सर्वस्व, प्राणधन परमात्मा ही हैं। हम आपके जीवन में भी परमात्मा की याद बनी रहना चाहिए। रामायण, गीता, धर्मशास्त्र, ईश्वर के नाम का सुमिरन, एवं सत्संग के माध्यम से निरन्तर भगवान का स्मरण बना रहे। ऐसा यत्न, प्रयत्न और परमात्मा से प्रार्थना करना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।