राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं। केवल कृष्ण को नहीं बल्कि श्रीकृष्ण को। श्री याने राधा, राधावाले कृष्ण को हम नमस्कार करते हैं। जो भगवान की
अनुरागात्मक सकती हैं, भक्ति हैं, जिनसे वे सगुण है। संसार केवल उन्हीं को भजता है, जिनमें कोई गुण हो। भगवान श्रीकृष्ण को गुणवान बनाने वाली राधिका ही है। यह वृषभानु की ही लली है, जो निर्गुण को सगुण बना देती हैं। अतः हम भी ऐसे गुणवाले श्रीकृष्ण को नमस्कार करते हैं। नमस्कार, प्रणाम, वंदन आदि शब्द हैं अपने यहाँ, किन्तु इन तीनों के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं, अलग-अलग भाव है। वंदन अर्थात् वफादारी, विश्वासघात न करने की प्रतिज्ञा। हम आपके वफादार सेवक हैं, कभी विश्वासघात नहीं करेंगे। वंदन में केवल सिर झुकाने की स्थूल क्रिया नहीं है, बल्कि उसमें तीन महत्वपूर्ण प्रयोजन हैं। हृदय, हाथ और मस्तिष्क। मस्तक झुकाते हैं, हाथ जोड़ते हैं। इनमें हृदय के भाव प्रकट होते हैं। हाथ का मतलब है कर्म, हृदय अर्थात् भक्ति और मस्तिष्क अर्थात बुद्धि, कर्म, भक्ति और ज्ञान तीनों चाहिए तब जाकर वंदन चरितार्थ होता है। यह केवल स्थूल क्रिया ही नहीं बल्कि हृदय का भाव इतना बढ़ जाये कि वह विश्वंभर को भी वशीभूत कर देता है। पूज्य श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज श्रीराम के चरणों में समर्पित हुए तो विनय पत्रिका में कहते हैं कि जाऊं कहां तजि चरण तुम्हारे। काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे।। वंदन में मस्तिष्क का बड़ा ही महत्व है। बिना समझे इसे झुकाना नहीं चाहिए और यदि एक बार किसी के चरणों में झुक गया तो उठाना मत।
।। श्रीकृष्णाय वयं नमः।। प्रणाम का अर्थ है प्रामाणिकता का प्रतिज्ञापत्र। प्रणाम करते हो, तब यह प्रतिज्ञा भी कर रहे हो कि जीवन में कभी भी अप्रमाणिक नहीं बनेंगे। नमस्कार करो तो इस भाव से कि हे नाथ! मैं कभी भी नमक हराम नहीं बनूंगा, सदैव आपके प्रति वफादार रहूंगा। श्री रामचरितमानस के बालकांड के मंगलाचरण में गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम जी को वंदन, सीता जी को नमस्कार और हनुमान जी को प्रणाम करते हैं। गोस्वामी श्री तुलसीदास जी की कामना मारुति के समान प्रमाणिक सेवक बनने की है। सीता मां से कामना करते हैं कि मैं आपका बेटा हूं, आपने मेरा पालन पोषण किया, मुझे बड़ा किया, मेरे दुर्गुणों को मिटाया हे मां- मैं आपके चरणों में नमस्कार कर रहा हूं। प्रभु के प्रति वंदन में भाव यह है कि मैं आपका वफादार सेवक बनूं, कभी विश्वासघात नहीं करूंगा। आगे भाव विभोर होकर कहते हैं कि जाऊं कहां तजि चरन तुम्हारे।। अद्भुत वफादारी है श्रेष्ठ वफादारी है। ऐसे प्यारे नंद नंदन को वंदन करें और पूर्ण भाव से कहें कि हे प्रभु, आप ही जीवन है, आपको छोड़कर मैं कहां जाऊं? आपको एक पल भी भूलना मेरे जीवन की बदकिस्मती होगी। आपका नित्य स्मरण ही हमारे जीवन की संपत्ति है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।