राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री नारद जी भगवान् के परम भक्त हैं। भगवान के दास हैं। वे उदास कभी नहीं रहते। भगवान का दास होकर उदास रहे तो फिर भक्ति और विश्वास कहाँ, भक्ति मार्ग की रीति है कि जो प्रभु का हो गया उसके लिए चिंता करना दोष है। भक्तिमार्गी को चिन्तन करना चाहिए, चिन्ता नहीं।लेकिन फिकर सबको खा गई, फिकर सबकी पीर। फिकर की फाकी करे, उसका नाम फकीर।। चिन्ता तो चिता के समान है। चिता तो मुर्दे को जलाती है, लेकिन चिन्ता तो जिन्दों को जला देती है। भगवान् का दास सदैव आनन्द में रहता है। वह कभी उदास नहीं होता, कभी उग्र नहीं होता, व्यग्र नहीं होता, वह शान्त रहता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने संयम को नहीं खोता। ऐसे शान्त महापुरुषों का संग हमें शान्ति देता है। जिसके पास बैठने मात्र से शान्ति का अनुभव हो, व्यग्रता, उग्रता सब समाप्त हो जाय, वही सच्चा संत होता है। उसके दास के दास हम बनें। मानव- जीवन की अन्तिम परीक्षा मृत्यु है। जिसका जीवन सुधरा हुआ है, उसकी मृत्यु भी सुधर जाती है। मृत्यु तब सुधरती है जब प्रत्येक क्षण सुधरता है। जीवन उसका सुधरता है, जिसका समय सुधरा हुआ होता है। समय उसी का सुधरता है, जो समय का मूल्य जानता है। क्षण-क्षण और कण-कण का सदुपयोग करो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।