राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि महापुरुषों की महिमा का वर्णन नहीं हो सकता। महापुरुष जिस कुल में उत्पन्न होते हैं, उस कुल के सभी व्यक्ति परमात्मा की प्राप्ति के अधिकारी बन जाते हैं।
महापुरुष जहां रहते हैं, जहां उनके चरण टिक जाते हैं, वह स्थान पवित्र हो जाता है तथा विशेष प्रभावशाली बन जाता है। बिना झाड़े बुहारे भी वह स्थान पवित्र है। उस स्थान पर भगवान् का ध्यान करने से स्वतः ध्यान लग जाता है। महापुरुषों की सन्निधि का यदि सौभाग्य मिल जाय तो फिर क्या कहना है। महापुरुषों की सन्निधि में बैठकर ध्यान करने से ऐसा प्रगाढ़ ध्यान होगा कि मानो भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन हो रहे हों। संसार में जितने भी तीर्थ हैं, सब महात्माओं के कारण या उनकी कृपा से ही हैं। वृन्दावन,अयोध्या आदि भगवान् के अवतार स्थल होने से तीर्थ हैं, किन्तु इसमें हेतु तो भक्त-महापुरुष ही है। भगवान् श्री कृष्ण के अवतार में वसुदेव- देवकी हेतु बने और भगवान्
श्रीराम के अवतार में दशरथ- कौशल्या, वस्तुतः अवतार प्रधानत: भक्तों-महापुरुषों के लिये ही होते हैं। इन अवतार स्थलों के अतिरिक्त जो तीर्थ हैं वे महापुरुषों के निवास स्थान होने से ही तीर्थ बन जाते हैं। परमार्थ-साधन में श्रद्धा बहुत ही महत्व की चीज है। ईश्वर में, महात्मा में, शास्त्र में जो पूज्य भाव है- प्रत्यक्ष की भांति विश्वास है- उसका नाम श्रद्धा है और प्रत्यक्ष से भी बढ़कर विश्वास का नाम परम श्रद्धा है। महापुरुषों के प्रति ऐसी परम श्रद्धा अर्जन करने का प्रयत्न करना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।