राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि ईश्वर की आराधना में श्रद्धा और विश्वास की बहुत महिमा है। बिना श्रद्धा विश्वास के बड़े-बड़े योगी भी अपने भीतर विराजमान परमात्मा का अनुभव नहीं कर पाते तो सामान्य व्यक्ति की क्या गणना है। अपने यहां भगवान शंकर को विश्वास का स्वरूप बताया गया है और माता पार्वती को श्रद्धा का स्वरूप बताया गया है। शिव पार्वती की आराधना करने से जीवन में श्रद्धा विश्वास का उदय होता है। परमात्मा घट-घट में विराजमान है। श्रद्धा- विश्वास के अभाव में उनका अनुभव नहीं हो पा रहा है। जीवन में श्रद्धा विश्वास का उदय हो तो घट-घट में परमात्मा का अनुभव होने लगेगा। अगर हम चाहते हैं कि सर्वत्र हमें परमात्मा का अनुभव हो तो शिव पार्वती की आराधना करना चाहिए। विश्वास सदैव एक सा रहता है, श्रद्धा कभी घटती है, कभी बढ़ती है, कभी समाप्त भी हो जाती है, तो कभी जन्म लेती है। शिवचरित्र में भगवती सती के रूप में होती हैं। फिर वह दक्ष यज्ञ में शरीर का त्याग कर देती हैं। पुनः पार्वती के रूप में जन्म लेती हैं और धीरे-धीरे बढ़ती हैं और शिवजी से उनका विवाह होता है। इस कथा से हम आपके लिए आध्यात्मिक शिक्षा यही है कि- माता-पिता, गुरु-गोविंद, सत्संग के प्रभाव से हम आपके अंदर श्रद्धा जन्म ले-ले तो धीरे-धीरे सत्संग, उपासना, नाम जप के माध्यम से श्रद्धा को बढ़ाना है और श्रद्धा बढ़ेगी तो एक दिन शिव को प्राप्त हो जायेगी और हमारा जीवन धन्य हो जायेगा। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, चातुर्मास का पावन अवसर, महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे श्री शिव महापुराण महा- महोत्सव के सप्तम दिवस में शिव विवाह की कथा का वर्णन किया गया और उत्सव महोत्सव मनाया गया। कल की कथा में कुमारखंड की कथा का वर्णन किया जायेगा।