नई दिल्ली। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूरे देश में 30 अगस्त को मनाई जा रही है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को अवतरित हुए। कई वर्षों के बाद श्री कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर असमंजस की स्थिति नहीं है, क्योंकि इस वर्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा और सोमवार का अद्भुत संयोग बन रहा है। मान्यत: वैष्णव और स्मार्त सम्प्रदाय को मानने वाले लोग इस त्यौहार को अलग-अलग नियमों से मनाते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार वैष्णव वे लोग हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय में बतलाए गए नियमों के अनुसार विधिवत दीक्षा ली है। ये लोग अधिकतर अपने गले में कण्ठी माला पहनते हैं और मस्तक पर विष्णुचरण का चिन्ह (टीका) लगाते हैं। इनके अलावा सभी लोगों को धर्मशास्त्र में स्मार्त कहा गया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वे सभी लोग, जिन्होंने विधिपूर्वक वैष्णव संप्रदाय से दीक्षा नहीं ली है, स्मार्त कहलाते हैं। सामान्य भाषा में कहा जाये, तो जो स्मृतियों को मानते हैं वे सभी स्मार्त कहलाते हैं।जन्मदिन अपनी तिथि पर मनाने का नियम होता है। जो स्मृतियों को मानते है वो सभी तिथि पर ही मनाते है अब तिथि में उदया हो या पर्व के समय वास्तविक तिथि हो, यह संदेह है। उदया तिथि सामान्य रूप से स्नान दान में ली जाए तो उचित है, किंतु पर्व में या जन्म में वास्तविक ही लेना चाहिए। मंदिर व साधु संत रोहणी नक्षत्र से मनाते हैं, तो वो तिथि की चिंता नही करते वे नक्षत्र प्रधान है। ग्रहस्थ तिथि प्रधान है, जब हम तिथि से मनाते है, तो हमें वास्तविक तिथि को ही लेना चाहिए। जन्माष्टमी का पावन पर्व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस वर्ष जन्माष्टमी के अवसर पर कई वर्षों के बाद ऐसा संयोग बना है जो बहुत ही दुर्लभ है। इस योग के प्रभाव से इस वर्ष स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय एक ही दिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे, श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि में मध्य रात्रि में हुआ था। शास्त्रों में कहा गया है कि जन्माष्टमी के अवसर पर 5 तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है। ये 5 तत्व हैं भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि कालीन अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना।इस बार ऐसा संयोग बना है कि ये सभी तत्व 30 अगस्त को मौजूद रहेंगे। इस दिन सोमवार है। सुबह से अष्टमी तिथि व्याप्त है, रात में 2 बजकर 2 मिनट तक अष्टमी तिथि व्याप्त है जिससे इसी रात नवमी तिथि भी लग जा रही है। चंद्रमा वृष राशि में मौजूद है। इन सभी संयोगों के साथ रोहिणी नक्षत्र भी 30 अगस्त को मौजूद है। इस बार जन्माष्टमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। इसके साथ ही वृषभ लग्न और वृषभ राशि के पंचम भाव में बुध और शुक्र एक साथ होने से लक्ष्मी नारायण योग की उत्पत्ति भी होगी। कृष्ण जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त को रात्रि 11:58 से 12:45 तक रहेगा।