राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दुर्गा दुर्गति नाशिनी दुर्गा का अर्थ होता है दुख हंत्री, जो हमारे आपके जीवन में आने वाली दुर्गति का नाश कर दे, उसको मां दुर्गा कहते हैं। मां भगवती आराधना उपासना करने वालों के दुःखों का नाश करती है। मां का चरण नौका के समान है जो माँ के चरणों का आश्रय लेता है उसका मंगल होता है। ब्रह्मा विष्णु शिव भी जिनकी आराधना करते हैं वह भगवती पराम्बा हैं। पृथ्वी माता भी दुर्गा हैं, जैसे मां संतान को गोद में खिलाती है, ऐसे हम, आप, पूरा संसार धरती मां की गोद में खेल रहा है। इसीलिए हम भारतवासी जब सुबह जगते हैं तो मां भूदेवी को प्रणाम करते हैं। जो सुबह जगने पर धरती माँ को माथा टेक करके प्रणाम करता है। उसके ऊपर मां भगवती की कृपा सदैव रहती है। एक बार कुबेर का खजाना खाली हो जाय, लेकिन उसके घर में धन की कमी नहीं होती है। जिसके हृदय में मां के प्रति श्रद्धा है। भगवान शंकर का वाहन नंदी (वृषभ) है। भगवान नदी पर विराजते हैं। वृषभ शास्त्रों में धर्म का प्रतीक बताया गया है। धर्म के चार चरण हैं।
सत्य, तप, दया और दान,इन्हीं चार पर धर्म टिका हुआ है। भगवान नंदी पर विराजते हैं। इसका मतलब ही है जिसके जीवन में धर्म के चारों चरण आ गये, उसके हृदय में भगवान विराजते हैं। मां भगवती और भगवान शंकर को सभी पूजते हैं। देवता, दानव, अच्छे बुरे सब लोग मां और भगवान शंकर की शरण में जाते हैं। उपासना करते हैं। भगवान विष्णु, श्रीराम, श्रीकृष्ण को देवता ही पूजते हैं। भगवती और शंकर को सब पूजते हैं क्योंकि संतान अच्छी न हो तो एक बार पिता त्याग देगा लेकिन माँ नहीं त्याग कर सकती।भगवती कहती हैं सभी मेरे हैं, हम कैसे भी हों मां भगवती हमारा त्याग करने को तैयार नहीं है। श्रद्धया सत्यमाप्यते वेद भगवान भी कहते हैं- श्रद्धा से ही सत्य की प्राप्ति होती है।श्रद्धावान् लभते ज्ञानं श्रद्धावान् को ही ज्ञान मिलता है, श्रद्धावान को ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्यधाम) का पावन स्थल पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री मार्कंडेय महापुराण के चतुर्थ दिवस मां भगवती के प्राकट्य की कथा का गान किया गया। कल की कथा में भगवती की अन्य महिमा का गान किया जायेगा।