अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगा है हिमालयी

उत्तराखंड। इंसानी गतिविधियां कम होने से हिमालयी क्षेत्र पुराने स्वरूप में लौटने लगा है। जो वन्य जीव और फूल कम दिखते थे वह निचले क्षेत्रों में भी आसानी से नजर आ रहे हैं। हिमालयी क्षेत्रों में कस्तूरी मृग, थार, घुरड़ सहित अन्य जीवों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जबकि कस्तूरी कमल और फेन कमल जो बहुत कम दिखते थे वह भी जगह-जगह खिले हुए हैं। कोरोना के कारण पिछले दो वर्षों से यात्रा और पर्यटन गतिविधियां सीमित हो गई है, जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले वन्य जीवों से लेकर कई तरह की वनस्पति और फूल खिले दिख रहे हैं। रुद्रनाथ ट्रेक पर कस्तूरी मृग देखे जा रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में वर्षों से इस मृग को नहीं देखा गया था। घुरड़ की संख्या में भी इजाफा हुआ है। चोपता में थार और राज्य पक्षी मोनाल की संख्या भी अधिक आंकी गई है। फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब सहित अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ब्रह्मकमल के साथ कस्तूरी कमल और फेन कमल भी काफी संख्या में दिख रहे हैं। फेन कमल और कस्तूरी कमल ऐसा पुष्प है जो सामान्य तौर पर कम नजर आता है, लेकिन इस बार यह भी इन रास्तों पर खिला हुआ है। ब्रह्मकमल भी इस बार पहले के मुकाबले काफी अच्छी संख्या में खिले हुए हैं। वन विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से वन्य जीव प्रभावित होते हैं। शांत वातावरण मिलने पर जहां वह आसानी से विचरण करते रहते हैं वहीं उनकी प्रजनन क्षमता भी बढ़ जाती है। दो वर्षों में मानवीय गतिविधियां कम होने से वन्य जीवों का परिवार बढ़ रहा है। यही कारण है कि कस्तूरी मृग सहित दूसरे वन्य जीव जो अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में भी मुश्किल से नजर आते थे इस बार निचले इलाकों में विचरण करते देखे जा रहे हैं। वहीं बुग्यालों सहित अन्य क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा काफी कम हो गया है। पिछले वर्षों के मुकाबले इस बार कस्तूरी मृग, थार, घुरड़ और मोनाल अधिक दिख रहे हैं। मानवीय हस्तक्षेप कम होने पर वन्य जीवों में प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बहुत कम दिखने वाले कस्तूरी कमल और फेन फ्लावर भी हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी में खिले हुए हैं।

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