राजस्थान/पुष्कर।परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीपद्ममहापुराण में भगवान श्रीराधाकृष्ण की अद्भुत झांकी- भगवान व्यास कहते हैं- कि प्राचीन समय में मैंने फल, मूल, पत्र, जल, वायु का आहार करके कई हजार वर्षों तक भारी तपस्या की। इससे भगवान मुझ पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने ध्यान में लगे रहने वाले मुझे भक्त से कहा- महामते! तुम कौन-सा कार्य करना अथवा किस विषय को जानना चाहते हो? मैं प्रसन्न हूं, तुम मुझसे कोई वर माँगो। संसार का बंधन तभी तक रहता है, जबतक कि मेरा साक्षात्कार नहीं हो जाता। व्यास जी ने कहा कि भगवन् मैं आपही के तत्व का यथार्थ रूप से साक्षात्कार करना चाहता हूँ। नाथ! जो इस जगत का पालक और प्रकाशक है; उपनिषदों में जिसे सत्यस्वरूप परब्रह्म बतलाया गया है; आपका वही अद्भुत रूप मेरे समक्ष प्रकट हो, यही मेरी प्रार्थना है। श्रीभगवान ने कहा कि महर्षे!(मेरे विषय में लोगों की भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं) कोई मुझे ‘प्रकृति’ कहते हैं, कोई पुरुष। कोई ईश्वर मानते हैं, कोई धर्म। किन्ही-किन्ही के मत में मैं सर्वथा भय रहित मोक्षस्वरूप हूं। कोई भाव (सत्तास्वरूप) मानते हैं और कोई- कोई कल्याणमय सदाशिव बतलाते हैं। इसी प्रकार दूसरे लोग मुझे वेदांतप्रतिपादित अद्वितीय सनातन ब्रह्म मानते हैं। किंतु वास्तव में जो सत्ता स्वरूप और निर्विकार है, सत-चित और आनंद ही जिसका विग्रह है तथा वेदों में जिस का रहस्य छिपा हुआ है, अपना वह परमार्थिक स्वरूप आज तुम्हारे सामने प्रकट करता हूँ। भगवान व्यास कहते हैं कि इतना कहते ही मुझे एक बालक का दर्शन हुआ, जिसके शरीर की कांति नील मेघ के समान थी। वह गोपकन्याओं और ग्वाल-बालों से घिरकर हंस रहा था। वे भगवान श्याम सुंदर थे। जो पीत वस्त्र धारण किये कदंब की जड़ पर बैठे हुए थे। उनकी झांकी अद्भुत थी। उनके साथ ही नूतन पल्लवों से अलंकृत वृंदावन नाम वाला बन भी दृष्टिगोचर हुआ। इसके बाद मैंने नीलकमल की आभा धारण करने वाली कालिंद कन्या यमुना के दर्शन किये। फिर गोवर्धन पर्वत पर दृष्टि पड़ी, जिसे श्री कृष्ण ने इंद्र का घमंड चूर्ण करने के लिए अपने हाथों पर उठाया था। तब व्यास जी ने जगत के कारणों के भी कारण भगवान से कहा- नाथ ये गोपियां और ग्वाल कौन हैं? तथा यह वृक्ष कैसा है? तब वे बड़े प्रेम से बोले- मुने! गोपियों को श्रुतियां समझो तथा देवकन्याएँ भी इनके रूप में प्रगट हुई हैं। तपस्या में लगे हुए मुमुक्षु मुनि ही इन ग्वाल वालों के रूप में दिखाई दे रहे हैं। ये सभी मेरे आनंदमय विग्रह हैं। यह कदंब कल्पवृक्ष है। जो परमानंदमय श्रीकृष्ण का एकमात्र आश्रय बना हुआ है तथा यह पर्वत भी अनादि काल से मेरा भक्त है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में “श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव” में
श्रीपद्ममहापुराण के अष्टम दिवस की कथा में- भगवान श्रीराधाकृष्ण के तत्व का वर्णन किया गया। कल की कथा में उत्तरखंड की कथा का वर्णन किया जायेगा।