अपना कर्म करना भी है भगवान की पूजा: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि गोवर्धन पूजा अभिमान भगवान का भोजन है। किसी का भी अभिमान नहीं रहने देते। देवराज अपने को त्रिलोकधिपति मानते थे। प्रभु श्रीकृष्ण ने उनका भी मानमर्दन किया। भगवान् पापी से घृणा नहीं करते। पापी से पापी व्यक्ति भी प्रभु की शरण में जाता है तो पावन हो जाता है। लेकिन अभिमानी व्यक्ति भगवान को बिल्कुल पसंद नहीं है। सारे सद्गुण हमारे जीवन में आवे, आना चाहिये, ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन सावधान रहना चाहिये, सद्गुणों का अभिमान अच्छी बात नहीं है। गोवर्धन पूजा में यह भी बताया कि भगवान भक्तों की कैसे रक्षा करते हैं। सात दिन तक भगवान ने गिर्राज को धारण किया है। संकेत है कि यदि कोई ईश्वर का बन जायेगा अर्थात् भक्त बन जायेगा तो जिंदगी के सातों दिन उसकी रक्षा करूंगा। मनुष्य जिए चाहे सौ वर्ष, लेकिन दिन तो सात ही हैं। हर समय रक्षा का मानो भगवान ने संकेत दिया है। स्वकर्मणा तमभ्यर्च सिद्धिंविन्दति मानवाः। अपना कर्म करना भी भगवान की पूजा है। गोप ग्वालों का अपना कर्म क्या है? श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने सभी को उसके कर्मों का बोध कराया है। गोप ग्वालों का कर्तव्य कर्म है, कृषिगोरक्ष्य वाणिज्यं वैश्य कर्म स्वाभावजम्। वैश्य को खेती, व्यापार, गाय की रक्षा। गायों की रक्षा होती है गोवर्धन से, आप पूजा करेंगे गोवर्धन की तो सबका मंगल होगा, पूरे जगत का मंगल होगा, इस भावना से भगवान ने गोवर्धन पूजा करवाया। भगवान श्रीराधाकृष्ण भक्तों का मंगल करने के लिये गोवर्धन पर्वत के रूप में दर्शन दे रहे हैं। भक्त दर्शन परिक्रमा करके अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं और सर्व विधि भक्तों का मंगल होता है। बृजवासी गोप गोपियां गोवर्धन पूजा के अवसर पर बड़े प्रसन्न हुये। वे सोचते थे कभी ऐसा होगा कि हम भगवान के साथ लम्बे समय तक रहेंगे। भगवान भक्त बांछा कल्पतरु हैं सात दिन सात रात समस्त बृजवासी के साथ रहे। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चातुर्मास के पावन अवसर पर पाक्षिक भागवत कथा के सातवें दिन गोवर्धन पूजा की कथा का गान किया गया। कल रासलीला की कथा का गान किया जायेगा।

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