जीवन में पाप कर्म से बचने का करना चाहिये प्रयास: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की मथुरा लीला- कंस कलियुग का मूर्तिमान स्वरूप है। संत कहते हैं कंस के उद्धार की कथा बार-बार सुनने से कलियुग का प्रभाव क्षीण हो जाता है, भगवान की कथा सुनने वाले पर कलियुग हावी नहीं होता। अभी कलियुग है, जो भजन करते हैं उनके भजन में बाधा पहुंचाता है। जो पाप करते हैं, उनकी सहायता करता है। प्रकृति में तीन गुण है, सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। सत्युग में विशुद्ध सतोगुण होता है। त्रेता में सतोगुण रजोगुण का मिश्रण होता है। द्वापर में रजोगुण और तमोगुण का मिश्रण होता है, लेकिन कलियुग में पूर्णरूपेण तमोगुण का प्रभाव रहता है। सत्वगुण श्वेत प्रकाश रूप है। जो जैसा है दिखाई देता है। संसार क्या है? भगवान क्या है? रजोगुण मिश्रण है कभी प्रकाश कभी अंधकार। रजोगुणी व्यक्ति कभी भजन की तरफ तो कभी संसार के दोषों की तरफ झुकता है। सतोगुण भजन, रजोगुण दोनों तरफ, लेकिन तमोगुण का क्या स्वरूप है? अधर्मं धर्मं या मन्यते तमसावृता। सर्वार्थान विपरीताश्च वुद्धि सा पार्थ तामसी। वो तामसी बुद्धि है, जहां धर्म अधर्म के रूप में दिखता है, अधर्म धर्म के रूप में देखता है। जहां अहिंसा हिंसा के रूप में दिखती है और हिंसा अहिंसा के रूप में दिखती है। अपने पराये पराये अपने रूप में दिखने लगते हैं। तो समझो तमोगुण बुद्धि है। जब व्यक्ति पाप करता है, तमोगुण आता है, जब पाप कुछ कटते हैं तो रजोगुण आता है और पाप बिल्कुल समाप्त हो जाता है, तो बुद्धि सतोगुण समपन्न हो जाती है। तब व्यक्ति भजन सत्कर्म में लग जाता है। अतः जीवन में पाप कर्म से बचने का प्रयास करना चाहिये और जीवन में अधिक से अधिक सत्कर्म हो सकें, यह भी यत्न प्रयत्न और ईश्वर से प्रार्थना भी करना चाहिए, छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में “श्री दिव्य चातुर्मास महा- महोत्सव” के अंतर्गत पितृपक्ष में पाक्षिक भागवत के नवम् दिवस भगवान की मथुरा लीला का गान किया गया। कल की कथा में भगवान श्रीकृष्ण और महारानी रुक्मणी के विवाह की कथा का गान किया जायेगा।

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