हर संयोग के साथ होता है वियोग: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कन्ध का ज्ञान-विज्ञान शरीर को ही अपना स्वरूप मानना, आत्मा मानना, शरीर का अहंकार रखना और शरीर से संबंध रखने वालों में ममता रखना, यही अज्ञान है। न मैं शरीर हूं , न परिवार मेरा है, सब ईश्वर का है और ईश्वर हमारे हैं। हम केवल ईश्वर के हैं और केवल ईश्वर ही हमारे हैं, इसके अलावा हमारा कोई नहीं है, इसी को ज्ञान कहते हैं। शरीर मैं हूं, परिवार मेरा है, इसी को अज्ञान कहते हैं। ज्ञान की कमी का नाम अज्ञान है। शरीर मेरा नहीं, शरीर थोड़े समय के लिये मुझे मिला है। प्लेन में सीट को कहते हैं हमारी है घंटे दो घंटे के लिए आपने पैसे दिए हैं बैठे रहो, सीट तो सरकारी है। इसी तरह आप कहते हैं- मेरा मकान है, मेरी फैक्ट्री है, ये आपके सदा रहने वाले हैं क्या? अपना अपने को कभी छोड़ता नहीं, पराया सदा अपने पास रहता नहीं, ये शास्त्रीय सिद्धांत है। संसार की हर वस्तु बिछुड़ जाने के लिए मिलती है। हर संयोग के साथ वियोग है, लाभ के साथ हानि है, जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी है, दिन के पीछे रात है। जरा मोहन दया करके, छटा अपनी दिखा देना। हृदय के हौसले कुछ तो, दुःखी जन के बढ़ा देना। हमारे प्राण जब निकलें, करें सुर-पुर की तैयारी। तो तुम तिरछे खड़े होकर, मधुर मुरली बजा देना। भगवान के बन जावोगे विष भी अमृत बन जायेगा। राणा ने गिरधर का चरणामृत कह कर विष भेजा, दासी के हाथ कांप रहे थे, रो रही थी। मीरा ने पूछा क्या बात है? दासी ने कहा बता दूंगी तो पूरा परिवार सूली पर चढ़ा दिया जायेगा। मीरा ने कहा गोपाल न चाहे तब तक कोई मार नहीं सकता, बता? उसने कहा विष है । अब इस महल में मेरे तो गिरधर गोपाल नहीं सुनाई पड़ेगा। मीरा ने कहा चरणामृत कह कर भेजा है तो मैं चरणामृत का तिरस्कार नहीं कर सकती। श्याम पद पंकज का, परम पवित्र जल। श्याम नाम का ही तो, प्रेषक ये प्याला है। श्याम की ही याद आ रही है, जिसे देख कर। किसी ने कलंक निज, उर से निकाला है। रूद्र पात्र में है ये, हलाहल विष बिंदु। राधिका हृदय ने, व्रजेश को संभाला है। मेरी समझ में ये, विष का प्याला नहीं। श्याम रंग वाला मेरा, गिरधर गोपाला है। ये कटोरा राधारानी का निर्मल हृदय है। ये नीला-नीला विष, ये मेरे श्याम सुंदर है। श्रीराधारानी के हृदय में रहने वाले आज मीरा के हृदय में रहने के लिये उतावले हो रहे हैं, कहकर श्री मीरा जी जहर पी लिया। उनके लिए जहर अमृत बन गया। क्योंकि वे गिरधर की बन चुकी थी। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री दिव्य चातुर्मास के पावन अवसर पर पितृपक्ष में पाक्षिक भागवत के पन्द्रहवें दिवस नव योगेश्वरों की कथा का गान किया गया। कल की कथा में दत्तात्रेय महाराज के चौबीस गुरुओं की कथा और बारहवें स्कंद की कथा का गान किया जायेगा।

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