4400 मीटर की ऊंचाई पर होगी ड्रिलबुरी पीक की परिक्रमा

हिमाचल प्रदेश। लाहौल में समुद्रतल से 4400 मीटर की ऊंचाई पर ड्रिलबुरी पीक की धार्मिक परिक्रमा की जाएगी। नेपाल के ड्रुक अमीतावा मोनेस्ट्री के रिंपोछे कुंगा के नेतृत्व में ईको पदयात्रा होगी। बौद्ध धर्म में चंद्रभागा नदी के तांदी संगम के ऊपर स्थित ड्रिलबुरी पीक की एक परिक्रमा को कैलाश पर्वत की 13 परिक्रमा करने के बराबर माना गया है। इससे पहले 12 सितंबर 2019 को भूटान से आए ड्रक्पा संप्रदाय के दूसरे सबसे बडे़ अवतारी लामा खमटुल रिंपोछे ने ड्रिलबुरी पीक की ईको पदयात्रा को लीड किया था। उस दौरान खमटुल रिंपोछे ने तुपचीलिंग बौद्ध मठ में प्रवचन के दौरान ड्रिलबुरी पीक की एक परिक्रमा को कैलाश पर्वत की 13 परिक्रमा के बराबर बताया था। इस बार नेपाल के ड्रुक अमीतावा मोनेस्ट्री के रिंपोछे कुंगा के नेतृत्व में ईको पदयात्रा को लीड करेंगे। ड्रिलबुरी पीक की परिक्रमा में एक दिन का समय लगता है। इसे योगी चक्र समवारा गुरु का तीर्थ माना जाता है। इस बार कोरोना के चलते कुल्लू, मनाली, धर्मशाला, सिक्किम और दार्जिलिंग से बौद्ध अनुयायी व लामा परिक्रमा में शिरकत करेंगे। 2019 में खमटुल रिंपोछे के नेतृत्व में पांच हजार बौद्ध अनुयायियों ने परिक्रमा की थी। रिंपोछे ने कहा था कि दुनिया में चारों तरफ अशांति और उपद्रव का बोलबाला है। ऐसे में केवल धर्म ही दुनिया को इस चक्रव्यूह से निकलने का रास्ता बता सकता है। अवलोकितेश्वर समाधि पाठ करते हुए रिंपोछे ने कहा था कि जो व्यक्ति बुद्ध की शरण में रहता है, वही सच्चा बुद्ध कहलाता है। यहां लाहौल के अलावा वियतनाम, भूटान, नेपाल, चीन और यूरोपियन देशों से भी बौद्ध अनुयायी पहुंचते हैं। इस साल 20 अक्तूबर को ड्रिलबुरी पीक की परिक्रमा में भारत के ही बौद्ध अनुयायियों के आने की संभावना है। यंग ड्रक्पा एसोसिएशन लाहौल-स्पीति, लद्दाख, भूटान और नेपाल के स्वयंसेवी भी शिरकत करेंगे। यंग ड्रुक्पा एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील कुमार ने कहा कि कोरोना के चलते विदेशों से बौद्ध अनुयायी इस बार परिक्रमा में शिरकत नहीं कर सकेंगे।

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