तेल की खपत में 2030 तक जारी रहेगी बढ़ोत्तरी

नई दिल्‍ली। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था दबाव में रही, लेकिन इसके बाद भी इसी बीच सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार तेज प्रगति करता रहा। लेकिन इसके बाद भी यह प्रगति 2050 में शून्य कार्बन उत्सर्जन या वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री तक की कमी ला सकने के लक्ष्य से काफी दूर है। इस वैश्विक लक्ष्य को हासिल करने के लिए ग्लोबल तौर पर कोयले और पेट्रोकेमिकल्स पर आधारित ईंधनों यानी पेट्रोल, डीजल और गैस की खपत में कमी होनी चाहिए। लेकिन रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि जब नवीकृत गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल में बेहतर बढ़ोतरी होने के बाद भी कोयले-जीवाश्म ईंधनों की खपत में भी वृद्धि होती रहेगी। अनुमान है कि तेल की खपत में 2021 में 55 लाख बैरल प्रतिदिन और 2022 में 33 लाख बैरल प्रतिदिन तक की बढ़ोतरी होगी। इससे वैश्विक तापमान में कमी लाने और शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना कठिन हो सकता है। ऊर्जा की खपत सीधे-सीधे लोगों की आजीविका से जुड़ गई है। लिहाजा जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ ऊर्जा की मांग में बढ़ोतरी होती रहेगी। अनुमान है कि 2050 तक दो अरब लोगों की जनसंख्या विश्व जनसंख्या में जुड़ने वाली है। भारत जैसे विकासशील देश सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और हाइड्रोपॉवर ऊर्जा में बढ़ोतरी के बाद भी बढ़ी हुई ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले-तेल आधारित स्रोतों का उपयोग करने के लिए बाध्य होंगे। 2030 तक तेल की मांग बढ़कर 1030 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकती है। शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए तेल की खपत शून्य तक पहुंच जानी चाहिए। जबकि विभिन्न देशों द्वारा अपने लिए निर्धारित लक्ष्यों का भी यदि सरकारें पालन कर पाईं तो भी तेल की खपत को केवल 960 लाख बैरल प्रतिदिन के लगभग ही लाया जा सकेगा। यानी शून्य कारण उत्सर्जन का लक्ष्य अभी बहुत दूर की कौड़ी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *