भगवान को प्रणाम करने का है अनंत फल: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। सत्संग के अमृत बिंदु:- दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सुंदर कपड़े बिगड़ न जायें इस कारण मंदिर में मनुष्य भगवान् को साष्टांग प्रणाम नहीं करता। लेकिन प्रणाम करना चाहिये। भगवान को प्रणाम करने का अनंत फल है। किसी भी बात का अभिमान मत करो। किसी भी जीव को छोटा गिनने वाले की भक्ति‍ सिद्ध नहीं होती। जहां नजर जाये वहीं ईश्वर दर्शन और दीन-भाव प्रभु को प्रसन्न करने के साधन है। मैं निराभिमानी हूँ- ऐसा जो समझे उसमें भी सूक्ष्म अभिमान है। संसार के सुखों में लिप्त रहने वाले व्यक्ति उपनिषदों के अधिकारी नहीं है। ज्ञान हमारे जीवन में ठहरे इसके लिए वैराग्य आवश्यक है। सुबह, दोपहर एवं सायंकाल- रोज तीनों समय भगवान् की स्तुति करो। साथ ही सुख,दुःख एवं मरण-समय में भी स्तुति करो। सुवर्ण से समय की कीमत ज्यादा होती है। सूर्य की तरह परोपकार करो, किंतु अभिमान मत करो। सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य को अर्घ्य दान करो। सेवा और स्मरण बिना जिसे चैन न पड़े वह वैष्णव। सेवा करते समय रोमांच हो,एवं आंखों में आंसू आवे तो सेवा सधती है। सेवा, जप, ध्यान ये तीनों रोज करो। तीनों नहीं होवें तो एक साधन में ही दृढ़ निष्ठा रखो। सेवा में प्रमाद करने वाले का पतन हो जाता है। संसार के किसी वस्तु से सुख मिले तो उसके वियोग में दुःख होगा। तुम्हारा आनंद किसी के आधीन नहीं होना चाहिये, आधीन होगा तो दु:ख ही होगा। स्नान के बाद एकान्त में प्रभु की उपासना इस प्रकार करो:- सेवा-पूजा, स्तुति, कीर्तन, सत्संग, वाचन (गीता, रामायण, भागवत आदि), समस्त कर्मों का समर्पण। कोई पाप हुआ हो तो उसका प्रायश्चित्त करें। किये हुये कर्मों का फल प्रभु को अर्पण करें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना:- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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