पुष्कर/राजस्थान। जहां रस है वहां आनंद की प्राप्ति होती है। जहां रस आता है वहां आनंद आयेगा ही और जहां रस आता है वहां मन लगाना नहीं पड़ता, मन लग जाता है। कोई भी देहधारी प्राणी कर्म किये बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण भगवद् गीता में बहुत सुंदर बात कहते हैं कि जिस तरह कर्म के फल में आपकी आसक्ति नहीं होनी चाहिए, उसी तरह कर्म न करने में भी तेरा दुराग्रह नहीं होना चाहिये। क्योंकि दुराग्रह करना गलत है। हम जो भी कर्म करते हैं वह कर्म पूजा बन सकता है। जब कर्म यज्ञ की ऊंचाई को छू लेता है तब कोई भी कर्म यज्ञ बन जाता है। शर्त यह है कि वह सत्य से तुम्हें अभिन्न न करता हो। वह तुम्हें भगवान् के साथ जोड़ देता है, जो योग कर्म से जुड़े, सत्य से युक्त करें, भगवान् के साथ मिला दे वह कर्म है। फल की आसक्ति आपको कर्म में डूबने नहीं देगी, कर्म में जब तक डूबोगे नहीं, उसमें रस नहीं लोगे तब तक आनंद का आना संभव नहीं और ऐसा कर्म पूजा नहीं बन पाता। ऐसा कर्म हमेशा जोड़ेगा नहीं। कर्म द्वारा प्राप्त फल साध्य नहीं साधन है। कर्म के फल में आसक्ति नहीं होनी चाहिए। अगर आसक्ति रखकर कर्म करोगे तो तुम पूरे के पूरे डूब नहीं सकोगे। तुम इस कार्य में अगर डूबोगे नहीं, उसमें एकाग्र नहीं हो सकोगे तो आनंद की बात तो दूर रही कर्म में रुचि भी नहीं आयेगी। इसलिये तुम अपना काम डूबकर करो और ऐसी श्रद्धा रखो कि मुझे अच्छे से अच्छा फल मिलेगा। जो भक्तिमय जीवन पसंद करता है उसके साथ सफलता और समृद्धि अपने आप ही आ जाती है। जहां भक्ति है वहां सफलता और समृद्धि भी है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू-संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।