पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीराम कथा तृतीय दिवस शिवचरित्र एक सद् गृहस्थ का जीवन कैसा होना चाहिए? गृहस्थ जीवन-जिसका जीवन दिव्य होता है, वह मरने के बाद देवता बनता है। जिसका जीवन सादा है वही साधु है। मैं तुच्छ नहीं, मैं तो शुद्ध चैतन्यमय परमात्मा का अंश हूँ- यह हमेशा याद रखो। प्रभु को हमेशा साथ रखोगे, तभी जीवन सफल होगा। जिसका अधिकार सिद्ध होता है, उसे ईश्वर अपने आप बुलाते हैं। पूरा परिवार एक साथ बैठकर प्रार्थना करे, यही गृहस्थाश्रम का आनंद है। सत्कर्म की प्रेरणा देने के लिए ही बालक के हाथों से सत्कर्म कराओ। यौवन में धीरे-धीरे संयम बढ़ाते हुए भक्ति करोगे तो प्रभु अवश्य मिलेंगे। परोपकार करते समय अभिमान न आ जाए- इसका ध्यान रखो, सगर्भा स्त्री सत्कर्म करें तो ज्ञानी संतान पैदा होती है। इस तरह जीएँ कि हमें देखते ही लोगों की आंखों में से अमृत झरने लगे। समर्पण-भाव से जीवन संदेह रहित बनता है। फल की आसक्ति छोड़कर हमेशा कर्म करते रहने में ही जीवन की सार्थकता है। जहां मन-हृदय की शुद्धि है, वहां प्रभु का प्राकट्य है। जीव ईश्वर का पुत्र है वह चरित्रवान एवं पवित्र बने, प्रभु चाहते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन आश्रम से साधू-संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, सेवा कुंज के पास, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।