नई दिल्ली। पड़ोसी देशों की ओर से चल रहे सीमा विवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर मिल रही चुनौतियों को हल्के में लेने की जरुरत नहीं है। हमें आने वाले कल को भांपते हुए रक्षा तैयारियों को मजबूत बनाने की जरुरत है। चीन और पाकिस्तान की भारत के विरुद्ध बढ़ती नापाक हरकतें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
डोकलाम और पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना की शौर्य के आगे घुटने टेकने से तिलमिलाया चीन अब पूरी तैयारी के साथ सामने आने की रणनीति तैयार कर रहा है। वह लगातार अपनी सैन्य ताकत में बढ़ोतरी कर रहा है जो भारत से छिपा नहीं है। चीन सही मायने में अमेरिका की बराबरी कर रहा है। यह पहला मौका है जब संसदीय समिति को बैठक में रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट तौर पर चीन की ताकत की तुलना अमेरिका से की हो।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ चल रहे गतिरोध को देखते हुए सीमा सड़क संघटन (बीआरओ) को अपनी क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया है। चीन और पाकिस्तान से जिस प्रकार दोहरे मोर्चे पर खतरा बना हुआ है उससे निपटने के लिए वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की कमी को पूरा करना होगा। अभी लड़ाकू विमानों की जो संख्या है वह दो प्रतिद्वंद्वियों की चुनौती के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत भी हाथ पर हाथ रख कर तो नहीं बैठा है, वह भी अपनी रक्षा तैयारियों में जुटा है।
चीन ने एलएसी के निकटवर्ती क्षेत्रों में अपनी तरफ आधा दर्जन नये एयरफील्ड तैयार कर लिए हैं, जबकि उसके पास पहले भी एक दर्जन एयरफील्ड सीमावर्ती क्षेत्र में मौजूद थे। इसके जवाब में भारत की ओर से भी सीमा क्षेत्रों में नए एयरफील्ड विकसित किये जा रहे हैं। खतरों के दृष्टिगत मजबूती से मुकाबला करने की जरूरत है। रक्षा क्षेत्र में जो- जो कमियां हैं, उनका निराकरण किया जाना चाहिए। रक्षा तैयारियोंमें शिथिलता घातक होगा।