अब तो सामने आने लगी काशी की सच्चाई…

लखनऊ। काशी के ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण को लेकर एक बार फिर चर्चा जोर शोर से होने लगी है। अगर नजर डाला जाय तो हिंदू आस्था के साथ खूब खिलवाड़ किया गया। मथुरा में कृष्ण मंदिर, अयोध्या राम मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर की चर्चा ज्यादा इसलिए होती है क्योंकि यह ऐतिहासिक लिहाज से और सांस्कृतिक कारणों से ज्यादा चर्चित और प्रसिद्ध रहे है। देश में इस प्रकार से ध्वस्त किये गये मंदिरों की सूची कहीं ज्यादा लंबी है।

मार्तड में कश्मीर घाटी के सूर्य मंदिर के खंडहर आज भी आंखें नम कर देते हैं। सोमनाथ मंदिर के खंडहरों का भी यही हाल था। अयोध्या, मथुरा और काशी में मामला इसलिए थोड़ा अलग था क्योंकि वे मंदिर मुगल बादशाह तुड़वाते भी रहते थे, लेकिन स्थानीय लोग इसके बावजूद किसी न किसी प्रकार से वहां पूजा-अर्चना भी करते रहते थे। मंदिर से पीठ सटाकर मस्जिदें भी बनी थीं और साथ टूटा मंदिर भी रहता था। काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर आधे हिस्से में बनायी गयी मस्जिद को लेकर फिर बवाल मचा हुआ है।

भारत के लोग चाहते हैं कि कम से कम उस तथा कथित मस्जिद के अंदर जाकर देख तो लिया जाये कि वहां कौन-कौन सी मूर्तियां अब भी खंडित या पूरी पड़ी हुई हैं। तहखानों में मंदिर की कौन-सी वस्तुएं रखी हुई हैं। न्यायालय ने बाकायदा इसके लिए एक सर्वेक्षक नियुक्त किया और अब परत दर परत खुल रही है। कही शिवलिंग मिल रहा है तो कही दीवारों पर हिंदू धर्म से जुड़ी भगवान की मूर्तियां और कलाकृतियां। जिस समय अंग्रेजों का राज भारत में स्थापित हुआ तो उनके इतिहासकारों और उनके पोषित भारतीय इतिहासकारों ने इतिहास के नाम पर यह मुनादी करवाना शुरू कर दी कि भारत तुर्कों एवं मुगलों के अत्याचारों से त्रस्त था।

नये गोरे शासकों ने आकर भारतीयों को इस अत्याचारी राज से मुक्ति दिलवाई और भारत में आधुनिक काल शुरू हुआ। शुरू में कुछ लोगोंको शायद विश्वास भी हुआ। आर्कियोलाजी विभाग की स्थापना की गयी और जगह-जगह खोदाई से अरबों, तुर्कों एवं मुगलों द्वारा ध्वस्त किये गये मंदिरों के अवशेष मिलने शुरू हो गये। कुछ स्थानों पर स्थानीय लोगों ने उनका पुनरुद्धार कर पूजा अर्चना भी शुरू कर दी। बाद में अंग्रेजों ने उनके पुनर्निर्माण और पूजा-पाठ की मनाही कर दी,  लेकिन कुछ ऐसे मंदिर भी थे जिनमें पूजा-पाठ बंद करवाने में अंग्रेज सरकार विफल रही। काशी और मथुरा के मंदिर ऐसे ही थे।

मुसलमानों को भी इसमें कोई एतराज नहीं था, क्योंकि कुछ साल पहले तक उनके अपने पुरखे भी इन्हीं मंदिरों में पूजा-पाठ करते रहे थे। अंग्रेजों के चले जाने के बाद तोड़े गये इन मंदिरों के पुनर्निर्माण का प्रश्न फिर पैदा हुआ। ये टूटे हुए देवस्थान विदेशी शासकों द्वारा भारत के अपमान के प्रतीक थे। सरदार पटेल ने तमाम विरोध के बावजूद टूटे मंदिरों के पुर्नरूद्धार का काम कराना शुरु कर दिया लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही रहा कि जल्दी ही सरदार पटेल की मृत्यु हो गयी औऱ  पुनरुत्थान का यह सांस्कृतिक अभियान ठप हो गया। लेकिन भारतीयों ने अपना संकल्प नहीं छोड़ा। अयोध्या में राम मंदिर के ध्वस्त किये जाने के शताब्दियों बाद राम मंदिर का पुनर्निर्माण भी प्रारम्भ हो गया। अब न्यायालयों को अपना काम करने देना चाहिए। भारत में तुर्कों एवं मुगलों के दिन लद गये।

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