नई दिल्ली। देश नब्बे के दशक की अशांति एवं असुरक्षा के माहौल से काफी आगे निकल चुका है। किसी भी तरह के टकराव औऱ उसके बाद उपजी हिंसा से पूरा देश प्रभावित होता है। असुरक्षा के माहौल में कभी सकारात्मक सोच नहीं उभरती।
आज रोजगार- रोटी आम आदमी की प्राथमिकताएं हैं। कोरोना संकट से उबरता देश पहले ही बड़ी कीमत चुका रहा है। यूक्रेन संकट से विश्व खाद्य आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है तथा कच्चे तेल के दाम आसमान छूने लगे है। महंगाई लगातार बढ़ रही है।
बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। ऐसे हालातों में आये दिन धार्मिक स्थलों को लेकर उठने वाले विवाद देश के सामने नई चुनौती पैदा कर रहे हैं। नागपुर में एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रोज नये धार्मिक विवाद उठाने से परहेज करने की सलाह दी।
उन्होंने ज्ञानवापी मुद्दे पर कहा कि हम इतिहास नहीं बदल सकते। इसे न तो आज के हिंदुओं ने बनाया है और न ही आज के मुसलमानों ने। यह उस समय की घटित घटना है जब हमलावर बाहर से आये थे, जिसके मूल में स्वतंत्र भारत का सपना देखने वाले लोगों का
मनोबल तोड़ना मकसद रहा है। हिंदू समाज अपने श्रद्धा स्थलों पर तो ध्यान देता है लेकिन इसका मतलब संप्रदाय विशेष का विरोध नहीं है। उन्होंने नसीहत दी कि रोज- रोज़ नया मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिए। पहले सहमति से रास्ता निकाला जाना चाहिए।
जब नहीं निकलता है तो न्यायालय में जाते हैं। तो फिर कोर्ट जो निर्णय दे उसका सम्मान होना चाहिए। श्री भागवत ने यह भी कहा कि ज्ञानवापी के बारे में हमारी कुछ श्रद्धाएं हैं। पहले से परंपरा चलती आई हैं लेकिन हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं देखा जाना चाहिए।
निःसंदेह, यह बात तार्किक है कि हर पूजा पद्धति का सम्मान किया जाना चाहिए। धर्म किसी का व्यक्तिगत मामला है, वो किसी भी धर्म में रहे यह उसकी इच्छा है। अपने धर्म के प्रति सब की अपनी मान्यता हो सकती है, उसके प्रति पवित्र भावना हो सकती है।
किसी भी पूजा पद्धति का विरोध नहीं होना चाहिए। हम समान पूर्वजों के वंशज हैं। यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि संघ प्रमुख ने कहा कि उनका संगठन आगे मंदिरों को लेकर कोई आंदोलन नहीं करेगा। जाहिर है समाज को अनावश्यक विवादों में अपनी ऊर्जा का
क्षय नहीं करना चाहिए। देश 21वीं सदी में यदि धार्मिक विवादों में उलझा रहेगा तो प्रगति की राह अवरुद्ध होगी। किसी भी तरह की अशांति आखिरकार समाज में असुरक्षा का वातावरण ही पैदा करती है जिसका लाभ सिर्फ राजनीतिक दल ही उठाते हैं।
उन्हें वोटों के ध्रुवीकरण का लाभ उठाने का मौका मिल जाता है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि संघ प्रमुख ने जिन बातों का उल्लेख किया उसका अनुसरण संघ व अन्य आनुशंगिक संगठनों को भी करना चाहिए जिसमें सत्तारूढ़ दलों की ईमानदार कोशिश की भी बड़ी भूमिका होगी।