प्रथम धर्म है सदाचार: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि सदाचार प्रथम धर्म है और जो सदाचार से गिर गया उसको वेद भी पवित्र नहीं कर सकते।।आचारहीनः न पुनन्ति वेदाः।। वैष्णवता का लक्षण है कि उसका जीवन, खानपान, रहन-सहन, एकदम शुद्ध होना चाहिए। जैसा भोजन होता है, वैसे विचार होते हैं। आपके विचार भोजन पर निर्भर करते हैं। आपके विचार संग पर आधारित हैं। आप जैसा संग करेंगे, आप जैसा भोजन करेंगे, आपके विचार भी वैसे ही उदय होंगे। विभीषण जीव है। इतने वैभव के बीच में जीव रह रहा है, लेकिन दुःखी है रावण के यहां। क्योंकि रावण मोह है और मोह ग्रसित जीव कभी शांति का अनुभव नहीं कर सकता। रावण चाहता है कि विभीषण हमारी पंक्ति में मिल जाये, हमारे जैसा खाये पिये। हमारे जैसे अनेकों विवाह करले’ व्यसन और दुराचार का आश्रय ले, हमारा भाई है, इसलिए हमारा साथी बन कर रहे। विभीषण कहता है कि भाई! मैं सब कुछ छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन अपनी वैष्णवता, अपना सदाचार और अपना भगवत् चिंतन छोड़ने के लिये मैं तैयार नहीं हूँ। रावण के द्वारा यातनाएं भी विभीषण को दी जाती हैं। लेकिन भीषण अपने सिद्धांत से नहीं हटते हैं। विभीषण के घर की हर ईंट पर प्रभु श्री राम का नाम लिखा हुआ है। धनुष बाण अंकित है। रामायुध अंकित गृह, सोभा वरनि न जाइ। नव तुलसिका वृंद तहं देखि हरष कपिराइ। रावण का जीवन आसुरी जीवन है और विभीषण का जीवन सात्विक जीवन है। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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