नई दिल्ली। मानव तस्करी मानवता के विरुद्ध ऐसा भयावह कृत्य है जो मनुष्य को स्वतंत्रता जैसे मूलभूत अधिकार से वंचित करता है। मानव जीवन का तस्करी या अवैध व्यापार का शिकार होना किसी त्रासदी से कम नहीं है।
इससे मानवता कलंकित होती है। देश में अभी भी मानव तस्करी की समस्या का समुचित निदान नहीं हो पाया है। हालत यह है कि एशियाई देशों में भारत मानव तस्करी का गढ़ बनता जा रहा है। मादक पदार्थों की तस्करी और हथियारों के अवैध कारोबार के बाद मानव तस्करी दुनिया का सबसे बड़ा तीसरा संगठित अपराध है।
हालांकि इसकी रोकथाम के लिए मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक 2018 पारित कर कानून बनाया गया है, लेकिन मानव तस्करी का धंधा बेहिचक फल फूल रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों को माने तो देश में प्रति आठ मिनट में एक बच्चा लापता होता है।
मजदूरी, वैश्यावृति इनकी जहां नियति बन गई है, वहीं शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को बेचने का धंधा पुलिस, माफिया और कुछ डाक्टरों के गठजोड़ से किया जाता है। भारत में यह दूसरा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है।
कुछ का भाग्य होता है तो वह बच जाते हैं जबकि अनेक गुलामी के दलदल में ढकेल दिए जाते हैं। हाल ही में बिहार के समस्तीपुर स्टेशन पर आरपीएफ और जीआरपी की संयुक्त कार्रवाई में एक ट्रेन से छह मानव तस्कर गिरफ्तार किये गये और उनके कब्जे से 17 बच्चों को मुक्त कराया गया।
यह सभी बच्चें कटिहार जिले के विभिन्न गांवों के हैं। इनको मजदूरी के लिए लुधियाना ले जाया जा रहा था। यह तो संयोग ही था कि इसकी जानकारी पुलिस को लग गई और बच्चें मुक्त करा लिए गए। मानव तस्करी को रोकने के लिए कानून को और सख्त बनाने की जरूरत है जिससे मानव तस्करों के मन में खौफ हो।