पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ कथा एकादश दिवसीय सत्संग महामहोत्सव (अष्टम-दिवस)।।श्री कृष्ण-रुक्मिणी विवाह। गोकुल, नंदगांव और वृंदावन में भगवान् श्रीकृष्ण ग्यारह वर्ष बावन दिन रहे। इसके बाद नंद बाबा के साथ भगवान कंस के यज्ञ में मथुरा पधारे और भगवान ने कंस का उद्धार किया। भागवत में कंस उद्धार लीला की फलश्रुति में कहा गया है कि जो कंस के उद्धार की कथा कहते अथवा सुनते हैं उनको कलियुग व्याप्त नहीं होता अर्थात् कलियुग के दोषों से बच जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को ही मथुरा का राजा बनाया, यद्यपि उग्रसेन मनाकर रहे थे। प्रभु आप स्वयं ही गद्दी पर बैठे हैं। भगवान ने कहा नानाजी मैं गद्दी पर नहीं बैठूंगा, मैंने मामा जी को गद्दी के लिये नहीं मारा, मामा जी आततायी हो गये थे, जघन्य पाप में लीन हो गये थे, इसलिए मैंने उनको मारा। राजा आप ही रहेंगे। कभी कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कारागार में डाल कर जबरदस्ती राजा बन बैठा था। भगवान् ने उस अन्याय का अंत कर दिया। अन्याय बहुत दिन नहीं चलता, सात वर्ष,नहीं तो पन्द्रह वर्ष फिर तो अन्यायी को कोई बचाने वाला नहीं मिलता। भागवत के इस प्रसंग से शिक्षा मिलती है कि जीवन में कुछ कम सुख पाना ठीक है, लेकिन मार्ग सदैव न्याय का ही अपनाना चाहिए। भगवान् श्रीकृष्ण ने उज्जैन में सांदीपनि मुनि के आश्रम पर विद्या अध्ययन किये। सांदीपनि मुनि के गुरु उपमन्यु ने सांदीपनि को आशीर्वाद दिया था कि तुमने हमारी सेवा की है तुम्हारी सेवा भगवान करेंगे।
माता-पिता और गुरुजन का आशीर्वाद कभी नहीं जाता व्यर्थ: दिव्य मोरारी बापू
यद्यपि मथुरा में श्री गर्गाचार्य जी महाराज का गुरुकुल था, फिर भी श्री उपमन्यु गुरुजी की बात को सत्य करने के लिये भगवान् सांदीपनि मुनि के आश्रम पर विद्याध्यन किये और भगवान ने गुरुदेव के गुरुकुल में सेवा किये। इसीलिए शास्त्र बार-बार कहते हैं कि माता-पिता गुरुजन का आशीर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाता, लेकिन यह बात ध्यान रहे की आशीर्वाद सदैव सेवा से मिलता है। उद्धव-गोपी संवाद में उद्धव जी का अद्भुत ज्ञान और ब्रजवासियों का प्रभु के प्रति अद्भुत प्रेम का दर्शन कराया गया। सत्त्ररह बार जरासंध ने मथुरा पूरी पर आक्रमण किया, भगवान श्री कृष्ण ने उसे हर बार हराया। लेकिन छोड़ देते थे। अठारहवीं बार कालयवन के आने पर प्रभु श्री कृष्ण ने योग माया से कहकर द्वारिका पुरी का निर्माण करवा दिया और भगवान् समस्त मथुरा वासियों को द्वारिका में विराजमान कर दिये। श्रीद्वारिकापुरी पहुँचने पर प्रभु श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह
श्रीरुक्मिणी जी के साथ हुआ। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।