नई दिल्ली। प्रकृति के संरक्षण को लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं और कागजी कवायदों की भरमार भी दिखती है लेकिन इसका वास्तविक असर कितना है यह समझ से परे ही दिखाई देती है। देश में इस समय जो पर्यावरण की स्थिति है वह वास्तव में लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन गया है। येल और कोलम्बिया अर्थ इंस्टीट्यूट ने जो पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक- 2022 (ईपीआई) की 180 देशों की जो सूची तैयार की है, उसमें भारत सबसे नीचे है जबकि डेनमार्क पहले स्थान पर है।
भारत का सबसे कम स्कोर प्राप्त करना इन कागजी आकड़ों और निकम्मेपन को दर्शाता है। हालात सुधारने के लिए केन्द्र सरकार को मजबूत कानून बनाने की जरूरत है। पर्यावरण को सुधारने की जगह उद्योगों को अधिक सहूलियत देने से भी स्थिति खराब हुई है। इसमें मेगा इन्फ्रा परियोजनाएं भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं जिससे देश के जंगलों को क्षति पहुंची है और शहरों की हरियाली भी नष्ट हुई है।
भारत में पानी का प्रबन्धन भी ठीक नहीं है। अंधाधुन्ध बोरवेल होने से पानी खारा हो रहा है और जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। यह रिपोर्ट हर दो वर्षों पर तैयार की जाती है, जिसमें पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक की 11 श्रेणियोंके 40 मानकों को आधार बनाया जाता है। इसमें भारत की रैंकिंग 180 वीं है, जो देश में पर्यावरण प्रदर्शन की बदतर स्थिति का ज्वलन्त प्रमाण है।
वर्ल्ड इकोनामिक फोरम येल सेण्टर फार इन्वायरमेण्ट ला एण्ड पालिसी और कोलम्बिया विश्वविद्यालय के सेण्टर फार इण्टरनेशनल अर्थ साइंस की ओर से संयुक्त रूप से तैयार की गयी रिपोर्ट में पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत की चिन्ताजनक स्थिति के बारे में कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है।
इनमें पर्यावरण जोखिम का खतरा, पीएम 2.5 और हवा की शुद्धता, वायु प्रदूषण, पानी और सफाई के निर्धारकों, पेयजल की गुणवत्ता, जैव विविधता, जलस्रोतों के स्वास्थ्य वर्धक प्रबन्धन, कूड़े के निष्पादन, ग्रीन एनर्जी में निवेश सहित अन्य सभी कारकों को शामिल किया गया है। लगातार बदतर हो रही इस हालात को एक बड़ी और गंभीर चुनौती के रूप में लेना चाहिए तथा बहुआयामी प्रयास कर सुधार लाना चाहिए।