नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम उठाया है। कारपोरेट मामलों के मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि निधियों के रूप में कार्य करने की इच्छुक सूचीबद्ध कंपनियों को अब जमा स्वीकार करने से पहले केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है।
छोटे निवेशकों के हित में यह कदम उठाया गया हैं, क्योंकि ऐसे भी कई दृष्टांत सामने आए हैं कि लोगों का धन लेकर कंपनियां रातों-रात गायब हो जाती है। इससे निवेशकों को भारी क्षति उठानी पड़ती है। निराशा की स्थिति में कुछ निवेशक आत्महत्या भी करने को विवश हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लेते हुए इस प्रकार के नियम बना रही है।
इस कदम की जितनी सराहना की जाए वह कम है। इससे निवेशकों का जहां विश्वास बढ़ेगा और उनके आर्थिक हित भी सुरक्षित रहेंगे इस दिशा में निजी कंपनियों को नियंत्रित करने वाले नियमों में आवश्यक परिवर्तन किए गए हैं इसका उद्देश्य निधि कंपनियों पर सख्ती बढ़ाना है जिससे कि वह छोटे निवेशकों के हितों की उपेक्षा करने का दुस्साहस न कर पाए।
ऐसी सभी कंपनियों को अब जनता से धन प्राप्त करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेने के साथ ही निधि कंपनी के रूप में घोषणा पत्र हासिल करनी होगी। निधि कंपनी के गठन के लिए दस लाख रुपए की प्रारंभिक पूंजी भी आवश्यक है। 20 लाख रुपए की पूंजी 120 दिनों के अंदर निधि कंपनी की मान्यता के रूप में होनी चाहिए।
इसके साथ ही कंपनियों के लिए कुछ शर्तें भी लगाई गई हैं। जिनका अनुपालन आवश्यक होगा। ऐसी कंपनियों के नाम के अंत में निधि कंपनी का उल्लेख करना होगा। निधि कंपनियां अपने सदस्यों से ज्यादा रकम जमा करने का विज्ञापन नहीं दे सकती। पैसे का लेन-देन केवल सदस्य ही कर सकते हैं। कोई भी कंपनी निजी नहीं हो सकती।
यह कार्य केवल पब्लिक कंपनियां ही कर सकती हैं। साथ ही कंपनी कानून के तहत उनका पंजीकरण भी आवश्यक है। सरकार ने जो कदम कंपनियों पर यह जो सख्ती दिखाई है वह उचित है। यह कदम छोटे निवेशकों के पूरी तरह हित में है। छोटे निवेशकों के लिए भी यह जरूरी है कि वह किसी भी निधि कंपनी में धन जमा करने से पहले अपनी सभी आवश्यक जानकारी को प्राप्त कर लें।