याद रहेगी अमरनाथ यात्रा की त्रासदी

जम्मू- कश्मीर। सुचारू रूप से चल रही अमरनाथ यात्रा आखिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ ही गई। शुक्रवार को बादल फटने से आई बाढ़ में जहां कई श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई, कई लापता हो गए तथा कई घायल हो कर अस्पताल में इलाज करा रहे है। यह हृदय विदारक घटना प्राकृतिक आपदा का अत्यंत दुखद पक्ष है। 2013 के केदारनाथ त्रासदी की तरह ही इस घटना को भी याद किया जाएगा।

अमरनाथ तीर्थयात्रियों की सुरक्षित यात्रा के लिए शासन-प्रशासन की ओर से व्यापक और चुस्त व्यवस्था की गई थी लेकिन प्रकृति का कहर मानवीय व्यवस्था पर भारी पड़ा। अभी कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। बचाव और राहत कार्य युद्ध स्तर पर चलाया जा रहा है जिसमें पर्वतीय तलाश दल, बचाव दल और खोजी कुत्तों को अभियान में लगाया गया है।

इस बीच मलबे में दबे पांच लोगों को थ्रू वाल रडार की मदद से जीवित निकाला गया है।  इसके साथ ही अब तक 98 घायलों समेत 235 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया है जबकि यात्रा मार्ग में फंसे 20 हजार श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है जो बचाव दल की अदम्य साहस और सक्रियता को दर्शाती है। तलाश और बचाव अभियान में सेना, वायुसेना और एनडीआरएफ समेत अर्द्धसैनिक बल और आपदा प्रबंधन से जुड़ी तमाम एजेंसियां जुटी हैं।

इस हादसे में जन- धन की क्षति के लिए मौसम विभाग कटघरे में है। पवित्र अमरनाथ गुफा क्षेत्र में मौसम की सटीक पुर्वानुमान नहीं लगा पाना विभाग की विफलता है। हालांकि विभाग ने मंदिर के आस-पास के लिए येलो एलर्ट जारी किया था लेकिन येलो एलर्ट इस बात की चेतावनी नहीं देता कि बारिश अथवा भारी बारिश होगी।

यही कारण है कि प्रशासन ने इसे गंभीरता नहीं लिया जिसका खामियाजा तीर्थ यात्रियों को भुगतना पड़ा। मौसम,विभाग ने बादल फटने की घटना से इनकार किया है। यह विभागीय लड़ाई भले ही चलती रहे क्योंकि इस ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए सचेत होना होगा।

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