करूणा के सागर हैं भगवान शिव: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान् शिव परम करुणामय है। करुणा, मूर्तिमती होकर भगवान् शंकर के रूप में दिखाई देती है। कहते हैं- कर्पूरगौरं करुणावतार् परमात्मा के अंदर जो करुणा है, जीवों के ऊपर सहज कृपा करने की जो शक्ति है, वही शिव के रूप में हमें दिखाई देती है। किसी देवता से हम प्रार्थना करते हैं कि हम पर कृपा करो। यह हम साक्षात् करुणा की मूर्ति को ही कहें कि हम पर कृपा करो। देवता के अंदर करुणा है और शंकर मूल करुणा ही है। इसलिए करुणा से ही करुणा की याचना की जाए, तब शीघ्र सफलता मिल सकती है। करुणा मायने दया, किसी जीव के दुःख को देखकर पिघल जाना, दुःखी हो जाना, किसी के दुःख को मिटाने का प्रयास करना, यह करुणा का लक्षण है। वह करुणा जिन जीवों के अंदर आ जाती है, वे भी धन्य-धन्य हो जाते हैं। फिर जहां करुणा मूर्तिमती होकर शंकर के रूप में दिखाई दे रही हो- उस करुणामय भगवान् शिव की शरण में हम क्यों न जाएं।

भगवान् शिव का रंग कर्पूर की तरह है। वह कपूर की तरह गौरवर्ण हैं। जिसकी चादर में कोई दाग न हो, वह सफेद चादर बड़ी कीमती होती है। भोलेनाथ के शरीर में कोई दाग नहीं है, सिर्फ एक दाग है पर वह कलंक का नहीं, करुणा का ही दाग है। समुद्र मंथन के समय जब चराचर जीव विष की भीषण ज्वाला से जल रहे थे, संतप्त हो रहे थे और उस हलाहल को,गरल को, जहर को पीने के लिए कोई तैयार नहीं था,तब सारे देवताओं ने मिलकर करुणा की मूर्ति, भगवान् शंकर की स्तुति की, प्रार्थना की। तब दूसरों का दुःख अपने सिर लेकर, उन्होंने उस जहर को पी लिया। करुणा का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है- जरत सकल सुर वृन्द विषम गरल जेहि पान किया। तेहि न भजसि मतिमंद को कृपालु शंकर सरिस।। अरे जीव! तू उस शंकर का भजन नहीं करता, को कृपालु शंकर सरिस यह प्रश्न है। संसार में शंकर जैसा कृपालु, दयालु, करुणा का अवतार और कौन हो सकता है। जब दक्ष को भगवान् शंकर ने नया जीवन दिया, सभी देवता वहां उपस्थित थे। तब भगवान् शंकर ने अपनी भक्तवत्सलता दिखाई और बताया कि मेरे चार प्रकार के भक्त होते हैं- आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी। आर्त-भक्त की रक्षा करने के लिए भोले बाबा सदा तैयार रहते हैं। जब व्यक्ति दुनियां के दुखों से परेशान होता है, विपत्ति से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता, तब व्यक्ति भगवान् शंकर की शरण में आता है। आर्तत्राण परायण- आर्त भक्तों की पीड़ा को भगवान हर लेते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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