नई दिल्ली। कालेधन की समस्या से निबटने और उस पर अंकुश लगाने की दिशा में केन्द्र सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसमें से एक बड़ा विषय बेनामी सम्पत्ति का भी है। बेनामी सम्पत्तियों के माध्यम से कालेधन को समायोजित किया जाता है। ऐसी सम्पत्तियों का मालिक धन लगाने वाला होता है, जबकि सम्पत्तियां कानूनी तौर पर किसी दूसरे के नाम पर होती हैं।
इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि बेनामी सम्पत्ति कानून-2016 में किया गया संशोधन उचित नहीं है। बेनामी सम्पत्ति कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमना के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बेनामी सम्पत्ति के मामले में उन लोगों को बड़ी राहत दी है जिन लोगों के खिलाफ एक नवम्बर 2016 के पूर्व किए गए बेनामी ट्रांजक्शन को लेकर कार्रवाई की जा रही है।
पीठ ने स्पष्ट रुप से कहा है कि वर्ष 2016 में बेनामी कानून में किया गया संशोधन आगे की तारीख से ही लागू होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने इस सन्दर्भ में गणपति डीलकाम मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया है। इस महत्वपूर्ण फैसले में उन लोगों को कोई राहत नहीं मिलेगी, जिन्होंने एक नवम्बर या उसके बाद नोटबन्दी के दौरान कोई बेनामी ट्रांजक्शन किया है।
संशोधन कानून 2016 के सेक्शन 3(2) में व्यवस्था दी गयी है कि यदि कोई व्यक्ति बेनामी ट्रांजक्शन करता है तो उसे सात वर्ष की सजा के साथ सम्पत्ति की कीमत का 25 प्रतिशत अर्थदण्ड भी देना पड़ेगा। साथ ही बेनामी सम्पत्ति जब्त करने का भी प्रावधान कानून में है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अपनी जगह सही है।
इससे एक नवम्बर 2016 के पूर्व बेनामी ट्रांजक्शन करने वालों को अवश्य राहत मिलेगी लेकिन बेनामी सम्पत्ति के माध्यम से कालेधन को समायोजित करने वालों पर कठोरतम कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए। बेनामी सम्पत्तियों में धन का निवेश करने वालों में बड़े व्यापारी, राजनेता और अधिकारी बड़ी संख्या में शामिल हैं। ऐसे लोगों की जांच पड़ताल होनी चाहिए और कानून के अनुरूप उनके विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।