न्याय की शुचिता को मिले मजबूत आधार

नई दिल्ली। देश के कानून व्यवस्था में बदलाव या इसके त्वरित होने को लेकर हमेशा ही बात चलती रही है। गृहमंत्री अमित शाह का कानून में बदलाव के संकेत बदलते परिवेश और अपराध की प्रवृत्ति के दृष्टिगत आवश्यक और प्रासंगिक है। कानून में बदलाव आज के परिप्रेक्ष्य में समय की मांग है, क्योंकि कुछ कानून ऐसे हैं जो अब पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुके हैं, इन्हें कानून की किताब से हटा देने की जरूरत है।

वहीं जघन्य अपराधों में जांच प्रक्रिया इतनी लचर है जिससे न्याय प्रभावित होता है और गुनहगार सन्देह का लाभ पाने में सफल हो जाता है जो एक तरह से पीड़ित को ही सजा देने जैसा है। गांधीनगर के राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (एनएफएसयू) के प्रथम दीक्षान्त समारोह में  अमित शाह का यह ऐलान अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि केन्द्र सरकार भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम में व्यापक बदलाव करने जा रही है।

इस सम्बन्ध में सरकार का आपराधिक न्याय प्रणाली को फोरेंसिक जांच से जोड़ने का लक्ष्य न्याय की शुचिता को मजबूत आधार देने की दिशा में सार्थक कदम है। इसके लिए छह साल से अधिक की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच के प्रावधान को अनिवार्य और कानूनी बनाया जाएगा। फोरेंसिक जांच की सुविधा देश के सभी जिलों में उपलब्ध होगी।

इसके लिए एक कानूनी ढांचा तैयार किया जाएगा, ताकि जांच की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनी रहे। कानून में बदलाव इसलिए भी जरूरी है क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद किसी ने भी इन कानूनों को भारतीय परिप्रेक्ष्य में नहीं पाया। अब स्वतंत्र भारत में इन कानूनों को फिर से बनाने की जरूरत है। आपराधिक न्याय प्रणाली का फोरेंसिक, विज्ञान जांच से जुड़ना देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इससे जहां न्याय की शुचिता बनी रहेगी वहीं लोगों का कानून पर भरोसा भी बढ़ेगा।

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