पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि वह वेदों का ज्ञाता है, जो संसार के मूल रूप को समझ लेता है। संसार एक वृक्ष है, यह पीपल का वृक्ष है। संसार में पीपल का वृक्ष, या कोई भी वृक्ष, नीचे से ऊपर की ओर होता है और यह संसार रूपी वृक्ष ऊपर से नीचे की ओर आया है। क्योंकि मूल कहते हैं जड़ को, जड़ से ही वृक्ष होता है, संसार रूपी पेड़ का मूल क्या है? जड़ क्या है? विष्णु, नारायण, वे हो गये ऊपर ऊर्ध्वमूलं।
इसका मूल जो है वह ऊपर है और अधः शाखा उसके नीचे इसकी शाखा है। यानि इसके नीचे ब्रह्मा हो गये और ब्रह्म के बाद फिर त्रिगुण-सृष्टि रचना से यह संसार बन गया। पीपल के पेड़ से सृष्टि की उपमा दी गई है। ऊर्ध्वमूलमधः शाखामश्वतथं प्राहुरव्यं। यह अव्यय है, चलता रहता है और इसके पत्ते क्या है? प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं- वेद ही इस वृक्ष के पत्ते हैं। वृक्ष के पत्ते न हों तो ठूंठा पेड़ बिना पत्तों का बहुत सुंदर सुशोभित नहीं होता। अगर वेद न होते, यज्ञ-यज्ञादि, पूजा-पाठ न होता तो यह संसार सूखे पेड़ की भांति होता। वेद-रूपी पत्तों से ही इस संसार की शोभा है। सनातन धर्म का मूल वेद है।