धर्म। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार बिना कौए को भोजन कराए पितृों को संतुष्टि नही मिलती है। एक तरह से कौए को पितृों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि कौए में पितृों की आत्मा विराजमान होती है और यदि वह आपका भोज स्वीकार करते हैं तो इसका अर्थ है कि उन्हें शांति मिल गई है।
पितृपक्ष में कौए को भोजन कराने का महत्व:- जैसा कि सब जानते हैं कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना आवश्यक होता है। मान्यता है यदि व्यक्ति इस दौरान अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करते हैं तो उनसे पितृ रुष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध करने के बाद हम ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। लेकिन इसके साथ ही हम कौए को भी भोज कराते हैं।
शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण भोज से पूर्व गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी यानी पंचबलि को भोज कराना आवश्यक है। माना जाता है कि कौए इस समय में पितरों के रूप में हमारे आसपास विराजमान रहते हैं।
कौए को माना जाता है यम का प्रतीक:- पुराणों के अनुसार कौए को यम का प्रतीक माना गया है। कौए के बारे में माना जाता है कि वह शुभ-अशुभ संकेत भी देते हैं। इसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए पितृ पक्ष में श्राद्ध का एक भाग कौए को भी दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौए का बड़ा ही महत्व है। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान यदि कौआ आपके हाथों दिया गया, भोजन ग्रहण कर ले, तो इसका अर्थ है पितृ आपसे प्रसन्न हैं। यदि इसके विपरीत कौए आपका भोजन ग्रहण नहीं करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपके पूर्वज आपसे नाराज है।
कौए का भगवान राम से संबंध:- एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार किसी कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी। इससे माता सीता के पैरों में घाव हो गया। माता सीता को दर्द में देख भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने बाण मार के उस कौए की आंख फोड़ दी थी। कौए ने भगवान राम से क्षमा याचना की। भगवान राम ने शांत होकर कौए को आशीर्वाद दिया कि तुम्हें भोजन करने से पितृ प्रसन्न होंगे, तब से कौए का महत्व बढ़ गया और उन्हें पितृपक्ष के दौरान भोजन कराया जाना लगा।
पितृपक्ष के दौरान कौए को अन्न जल देने से मन जाता है पितृों को अन्न मिलता है।
अगर कौआ आपके द्वारा दिया गया अन्न खाता है तो यमराज प्रसन्न होते हैं।
कौए को भोजन कराने से सभी तरह का कालसर्प और पितृ दोष दूर होता है।