पेड़ के समान होती है हमारी इंद्रियां: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि तप में बड़ी शक्ति होती है, इसीलिए थोड़ा-थोड़ा तप करना चाहिए। तप से शक्ति संचित होती है और शक्ति से ही व्यक्ति आगे कुछ कार्य कर सकता है। पहले बांध बनाकर पानी को संचित किया जाता है, बाद में जब उस पानी को छोड़ा जाता है, तब उससे ऊर्जा तैयार होती है। क्योंकि पानी बहुत जोर से गिरता है, इसीलिए उससे बिजली पैदा हो जाती है। पानी को रोकने से उसके बहाव में शक्ति आ जायेगी, अन्यथा सामान्य रूप से बहता रहेगा। आप अपनी शक्ति को, तप के माध्यम से रोकेंगे, तब आपके अंदर उर्जा पैदा हो जायेगी, उससे आप जो करना चाहें,कर सकते हैं। अपने तप के आधार पर गांधारी ने दुर्योधन से कह दिया था कि- “तुम स्नान करके बिना वस्त्र आओ, मैं अपनी आंख की पट्टी खोल कर दृष्टि तुम्हारे शरीर पर डाल दूंगी, तुम्हारा शरीर वज्र हो जायेगा।” गांधारी ने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि आंखों पर पट्टी बंधी रहने के कारण, आंखों में ऊर्जा संचित हो गई थी। जब हम आंखों से किसी सुंदर वस्तु को देखते हैं, तब मन में लालच पैदा होने लगता है। कुछ गलत संस्कार आ जाते हैं और वह चिंतन हमारे अंदर की शक्ति को समाप्त कर देता है। इसीलिए आंखों की पट्टी खोल कर, जब गांधारी ने दुर्योधन को देखा, तब आंखों में संचित ऊर्जा से दुर्योधन का शरीर वज्र हो गया। अपनी शक्ति को संचित करने के लिए इंद्रियों को विषयों से मोड़ना होगा और मन को ईश्वर से जोड़ना होगा। इंद्रियां विषयों से मुड़ जाए और मन ईश्वर से जुड़ जाए, बस शक्ति अपने अंदर संचित होने लग जायेगी। उदाहरण÷ एक 3 फुट गहरा गड्ढा बनाइये और उस गड्ढे के चारों तरफ 8-10 वृक्ष लगाइए। उस गड्ढे को पानी से भर दीजिए और अगले दिन देखिए कि उसमें कितना पानी है। आप देखेंगे कि सारा पानी सूख गया, उसमें बिल्कुल भी पानी नहीं बचा है। आपके घर में बनी सीमेंट की टंकी को पानी से भर दीजिए और एक सप्ताह बाद देखिए, उसमें जितना पानी भरा था, उतना ही मिल जायेगा। मिट्टी के गड्ढे का पानी खाली क्यों हो गया? क्योंकि वृक्षों की जड़ों ने पानी खींचकर सारा पानी सुखा दिया। जबकि सीमेंट की टंकी में सोखने की कोई जगह नहीं, इसीलिए उसमें भरा सारा पानी सुरक्षित है। इस प्रकार हमारी इंद्रियां भी पेड़ के समान हैं, हमारा हृदय और मस्तिष्क गड्ढे के समान है। भजन से जो तप संचित होता है, वह जल के समान है। हम भजन के माध्यम से अपने अंदर जो तप इकट्ठा करते हैं, हमारी इंद्रियां उन्हें सोख लेती हैं। जब इंद्रियां भोगों की ओर दौड़ती हैं या भोग भोगती हैं, तब हमारा तप नष्ट हो जाता है। इंद्रियों को विषयों से मोड़ना है और मन को परमात्मा से जोड़ना है। अपनी ऊर्जा को बढ़ाने का शास्त्रों ने यही उत्तम उपाय बताया है। ऊर्जा बढ़ाने की कोशिश कीजिए, आपको अत्यंत लाभ होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।

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