पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ये मां है। हमारे आपके भीतर एक बालक है। बड़ा निर्दोष, बड़ा सरल, बहुत सहज, किंतु अबुध किंकर्तव्यविमूढ़! वह बालक जब कुछ गलत करता है तो मां प्रेम पूर्वक उसे टोकती है, कभी रोकती है, कभी उसको समझाती है। बेटे! ऐसा नहीं करते, अच्छे बच्चे ऐसा करते हैं? तुम्हें क्या करना चाहिए, मां सिखाती है। श्रीमद्भगवद्गीता भी वह माता है। हमारे भीतर के उस अबुध बालक को समझाती है। अर्जुन का मतलब है जो ॠजु आदमी है, जो बहुत सरल है, बहुत सीधा व्यक्ति है। जो सीधा है वही साधु है। भगवान् को सीधे लोग बहुत पसंद है।सरल सुभाव न मन कुटिलाई। जथा लाभ संतोष सदाई। निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा। जो निर्मल हृदय वाला है, जो बड़ा सरल है, मन में जिसके कुटिलता नहीं है, ‘ यथा लाभ संतुष्ट है, वह भगवान को बहुत प्यारा लगता है। अर्जुन का सीधा सादा अर्थ है, ‘ ‘सरल आदमी, । बहुत सीधा आदमी,। श्रीमद्भगवद्गीता का पहला अध्याय जिसको हम अर्जुनविषादयोग” के नाम से जानते हैं। इसमें अर्जुन वक्ता है और कृष्ण श्रोता हैं। आयोजन कुछ और था और हो गया कुछ और। जो वक्ता था वह श्रोता बन गया और जो श्रोता था वह वक्ता हो गया। शुरुआत में अर्जुन जी (पहले अध्याय में) वक्ता है, अर्जुन कहता है, अर्जुन अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है और श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न होकर सुन रहे हैं। किंतु अर्जुन के मुख से जो प्रगट हो रहा है वह अर्जुन का विषाद है। देखा जाय- अर्जुन के वक्तव्य को जब हम गीता के पहले अध्याय में पढ़ते हैं तो लगता है कि कितना बड़ा समाजशास्त्री रहा होगा ये व्यक्ति। सोशल साइंस देखिये अर्जुन जी के वक्तव्य में! युद्ध की जो विभीषिका है, वह समाज के लिये कितनी नुकसान देय है, इसका वर्णन श्री अर्जुन जी करते हैं। दूसरा कोई होता तो अर्जुन के उस समाज विज्ञान के ज्ञान को देख करके प्रशंसा करता, ताली बजाता लेकिन श्रीकृष्ण ने ताली नहीं बजाई। श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रवचन को सुनकर डांट लगाई। अर्जुन को ताली नहीं मिली, डांट सुनने मिली, फटकार मिली। एक ऐसी फटकार जो किसी व्यक्ति के लिए सबसे बढ़कर होती है, इससे बढ़कर कोई फटकार नहीं हो सकती। ऐसी फटकार श्री कृष्ण के मुख से निकली अर्जुन के लिए और वह श्रीमद्भगवत गीता ने लिखी है क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठं परन्तप। अर्जुन तू नपुंसक न बन, ये तुझे शोभा नहीं देता, ये तेरा ज्ञान नहीं है, ये तेरे हृदय की दुर्बलता है। तो क्या अर्जुन ने जो कहा है वह सच नहीं है? हम भी जब पढ़ते हैं अर्जुन के वक्तव्य को तो ये मानने का मन करता है कि बिल्कुल सही कह रहे हैं। कई लोग तो यहां तक कह देते हैं कि अर्जुन जो कह रहा था, वह बिल्कुल सही था, वह लड़ना नहीं चाहता था, भगवान् श्री कृष्ण ने उसको उकसाया। ये सारा उपद्रव भगवान् श्री कृष्ण के चलते हुआ, वरना युद्ध की वह विभीषिका होती ही नहीं। शांति अच्छी थी—-। युद्ध रहित विश्व की कल्पना अच्छी बात है। शस्त्र रहित समाज की कल्पना यदि हम करें उसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन वह शांति क्या समस्याओं से भागने से मिलेगी? वह शांति क्या समाज में होने वाले अत्याचार, अनाचार और दुराचार की अनदेखी करने से मिलेगी? वह शांति हमें अर्थात् मानवता को अभिप्रेत नहीं है। अर्जुन के सामने अन्यायी खड़े हैं। अन्याय का विरोध तो होना ही चाहिए। अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए। अन्याय करना पाप है और अन्याय सहन करना महापाप है। दुष्टों की सक्रियता इतनी खतरनाक नहीं है जितनी कि सज्जनों की निष्क्रियता खतरनाक है। सज्जन जब निष्क्रिय हो जाते हैं तो दुर्जनों का बोलबाला और समाज पतन की तरफ चला जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।