पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मातृदेवो भव। पितृदेवो भव।आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव। माता, पिता, गुरु के बाद अतिथि को महान बताया गया है। जब भोजन तैयार करें ; तुलसीदल डालकर भगवान के सामने रखें और लगभग पांच मिनट तक अतिथि की प्रतीक्षा करें और तब भगवान का प्रसाद मानकर भोजन करें। इस बीच यदि कोई अतिथि आ जाए तो भगवान् समझकर उसको भोजन करा दे। इस प्रकार किया गया अन्नदान, महादान कहलाता है। अन्नदानं परं दानं न भूतं न भविष्यति।अर्थात् अन्न जैसा दान न कभी हुआ और न होगा।राजा रंतिदेव- अतिथि सेवा में राजा रंतिदेव का नाम आदर से लिया जाता है। वे सब कुछ दान कर जंगल में भटक रहे थे। सैंतालीस दिनों तक भूखे रहे, अड़तालीसवें दिन एक खीर की थाली और एक व्यक्ति के लिए एक लोटा जल उन्हें प्राप्त हुआ। भोग लगाकर वे खाने बैठे ही थे कि- एक याचक ब्राह्मण ने अपनी सुधा का वास्ता देकर भोजन मांगा। राजा ने आदर पूर्वक आधी खीर उसे दे दी। पुनः जब राजा भोजन करने बैठे तो एक भूख का सताया चतुर्थ वर्ण का व्यक्ति आ गया, उसकी करुण याचना पर शेष खीर उसको दे दी। सोचा, पानी से ही पेट भर लूंगा। जब पानी पीने लगे तो एक चांडाल कुत्तों सहित आ गया और जल की याचना करने लगा। राजा ने उसे वह जल पिला दिया इतनी देर में चांडाल अंतर्धान हो गया और त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु,महेश, आशीर्वाद देने के लिए प्रगट हो गये। वरदान मांगने को कहा तो राजा बोले, ‘सारे संसार के दुःख मुझ पर आ जाएं। गद्गद थे त्रिदेव अपनी अमूल्य रचना पर, भरपूर आशीष दिया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।