पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, एक बार त्रेता जुग माहीं। शम्भु गये कुंभज ऋषि पाहीं।। संग सती जगजननि भवानी।पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।। रामकथा मुनिवर्ज बखानी। सुनी महेश परमसुख मानी।। एक बार भगवान शंकर कैलाश से नीचे उतर कर दंडकारण्य आये। नासिक पंचवटी के आस-पास, जहां अगस्त ऋषि निवास करते थे। ऊपर से नीचे उतर कर आये शंकर जी। कैलाश ऊपर है, दंडकारण्य नीचे है। ऊपर से उतर के नीचे आये और बड़े होकर छोटे से कथा सुनने आये। यह बहुत ही सुंदर हम सबके लिये शिक्षा है। ज्ञान वही व्यक्ति पा सकता है, भक्ति वही पाता है जो अपनी जानकारी के लिये अभिमान से नीचे उतर के आ जाता है। जिसके मन में यह अहंकार है कि मैं सब कुछ जानता हूं, वह व्यक्ति जिज्ञासु कभी नहीं बनेगा। उसे तत्व की प्राप्ति कभी नहीं होगी। जब आप किसी को ऊपर बैठाल देते हैं कथा सुनाने के लिए, और स्वयं नीचे बैठते हैं इसका मतलब है कि आप ज्ञान पाने के अधिकारी बन जाते हैं। ज्ञान का प्रवाह ऊपर की ओर नहीं होता है। ज्ञान का प्रवाह नीचे की ओर होता है। जैसे नल को जब आप खोलते हैं तो बाल्टी नल के ऊपर नहीं रखनी होती है, नल के नीचे रखी जाती है। क्योंकि पानी का प्रवाह नीचे कि वह होता है। इसीलिए जब किसी श्रद्धेय को हम नमन करना चाहते हैं तो उसका सिर नहीं छूते हैं बल्कि चरण छुआ करते हैं। प्रश्न है? व्यक्ति का पैर ज्यादा कीमती है या सिर? तो कहा जायेगा सिर। तो हम किसी श्रद्धेय का सिर क्यों नहीं छूते हैं? पैर क्यों छूते हैं? इसका भी समाधान यही है। हम किसी का सिर छुयेंगे इसका मतलब कि हम उससे बड़े हैं और हम जब उसके चरण छूते हैं, इसका मतलब है कि- हम आपसे बहुत छोटे हैं। आपके चरणों की रज के समान है, हमें आप ज्ञान दीजिए। हमें आप आशीर्वाद दीजिए। चरणों का वंदन करने का मतलब है कि हम अपने में दीनता प्रकट करते हैं। हम ज्ञान पाने के लिये आपके सामने झुकते हैं। भगवान शंकर हिमालय की ऊंचाई से उतर कर श्री अगस्त ऋषि के आश्रम पर कथा सुनने आये और हम-सबको अपने दिव्य चरित्र से सुंदर शिक्षा प्रदान किये हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।