लाइफस्टाइल। आजकल बदलती लाइफस्टाइल और गैजेट्स का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। ऐसे ही कुछ कारणों से स्लीप डिसऑर्डर जैसी गंभीर समस्याएं बढ़ती जा रही हैं और आजकल ये समस्या बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी देखने को मिल रही है। स्लीप डिसऑर्डर कई बार बच्चों में बचपन से देखी जा सकती है और कुछ मामलों से लंबे समय तक इसका पता लगाना काफी मुश्किल होता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों की नींद काफी हद तक उनकी उम्र पर निर्भर करती है और बढ़ती उम्र के साथ-साथ व्यक्ति की नींद भी कम होनी शुरू हो जाती है। लेकिन नींद की कमी बच्चों की हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है, सही नींद ना लेने से बच्चा हर समय चिड़चिड़ा और सुस्त हो जाता है और खराब डाइजेशन का सामना करना पड़ता है। बच्चे स्लीप डिसऑर्डर के कारण पूरी रात बार-बार जागते हैं और दिन में खेलने कूदने के बजाय शांत और सुस्त बैठे रहते हैं। स्लीप डिसऑर्डर की समस्या काफी गंभीर होती है, जिसमें लापरवाही नही करनी चाहिए। आइए इसके विषय में विस्तार से जानते हैं।
बच्चों में स्लीप डिसऑर्डर के प्रकार :
नाईट मेयर :-
कई बार नींद ना आने का कारण बुरे और भयानक सपने भी हो सकते हैं, अगर जब बच्चा छोटा है और वो टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर वीडियो अधिक देखता है, तो वह भी नाइट मेयर का कारण हो सकता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें की बच्चें के सोने से 1-2 घंटे पहले उसके पास से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर कर दें। बच्चे के सोते समय रूम की लाइट ऑफ कर देना चाहिए।
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम :-
ये समस्या ज्यादातर बड़ो में पाई जाती है, लेकिन अब ये समस्या बच्चों को भी परेशान करने लगी है। अक्सर बच्चे इस समस्या को नोटिस नही कर पाते हैं, अगर आपका बच्चा इस तकलीफ से जूझ रहा है तो उसकी सोने और उठने की दिनचर्या की फिक्स करें और सोते समय अपने बच्चे को गले लगा कर सोएं। अगर फिर भी बात ना बनती है तो किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
स्लीप एप्निया :-
स्लीप एप्निया बच्चें के लिए थोड़ा ज्यादा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि अक्सर बच्चें इस समस्या के चलते सोते समय सांस लेना बंद कर देते हैं और कभी-कभी तो जोर-जोर से खर्राटे लेने लगते हैं। इसके कारण आगे चलकर बच्चों को दिल की भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर आपको अपने बच्चों में ये दिक्कत देखने को मिलती है तो आप तुरंत डॉक्टर से जरूर परामर्श लें। इसके लिए आपको बच्चे के रूम का टेंपरेचर नॉर्मल रखना चाहिए।